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दसवां परिशिष्ट. १३१ ७१४ देखें । हैमबृहद्वृत्त्यवचूणि का लेखन काल निश्चित है। तदनुसार या तो वोपदेव और मल्लिनाथ का काल कुछ पूर्व मानना होगा अथवा हैमबृहवृत्त्यवचूर्णि में निर्दिष्ट तन्त्रोद्योत मल्लिनाथ विरचित न्यासोद्योत से भिन्न ग्रन्थ होगा।
पृष्ठ ६०८, पं०६-१८ तक उद्धृत वैयाकरणों के नामों के ५ विषय में-- ___'इस सूची में संख्या १६ पर 'रामाश्रम सिद्धान्तचन्द्रिकाकार' का नामोल्लेख किया है । इसका आगे (पृष्ठ ७१४) में सारस्वत व्याकरणकार के प्रकरण के अन्तर्गत ही निर्देश करने से यहां इस नाम का निर्देश करना युक्त नहीं है । इस प्रकार यहां एक संख्या की कमी १० करनी होगी।
पृष्ठ ७०८, पं० २२ 'मेन्द्र' के स्थान में 'क्षेमेन्द्र' होना चाहिये।
पृष्ठ ७०८, पं० २३ 'कृष्ण शर्मा'--बेल्वाल्कर के लेखानुसार क्षेमेन्द्र के गुरु का नाम 'कृष्णाश्रम' होना चाहिये (द्र० सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ६७)। .. - पृष्ठ ७०८, पं० २४ 'भिन्न है' के आगे बढ़ावें--'डा० बेल्वालकर ने क्षेमेन्द्र के काल के विषय में इतना ही लिखा है--'इससे स्पष्ट होता है कि क्षेमेन्द्र १६.वीं शताब्दी की प्रथम तिमाही के अन्त में जीवित नहीं थे (द्र० सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ६८)।
पृष्ठ ७०६, पं०.२४ 'पूर्व कर चुके हैं' के आगे बढ़ावें-डा० २० बेल्वाल्कर ने धनेश्वर का काल सामान्यतया 'क्षेमेन्द्र के पश्चात् और १५६५ ई० से पूर्व माना है, जब कि धनेश्वर की व्याख्या की एक पाण्डुलिपि की गई।' (द्र० सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ६६)।
भाग २ पृष्ठ १०१६ पं० ३ बढ़ावें '' मैत्रेयरक्षित' के स्थान में '११. २५ मैत्रेयरक्षित' शोधे । - इसी प्रकार पृष्ठ १०३, पं० १ में '११' संख्या के स्थान में '१२'; पृष्ठ १.०४, पं० २३ में '१२ संख्या के स्थान में '१३'; पृष्ठ १०६, पं०.१ में '१३' संख्या के स्थान में '१४'; पृष्ठ १०७, पं० १६ में