________________
-१३०
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
महाभाष्य का अध्ययन किया था। कमलाकर के गुरु का नाम दत्तात्रेय था । सदाशिव ने कमलाकर की सहायता से महाभाष्य की व्याख्या लिखी थी।.. ..... .
- इसी हस्तलेख के अन्य स्थान पर अन्त्य लेख है५ इति श्रीकमलाकरदीक्षितांतेवासि-शिवपण्डितविरचिते भाष्यव्या
ख्याने द्वितीयोऽध्यायः समाप्तः ॥ ___ पृष्ठ ४७३, पं० २४ के आगे नया सन्दर्भ (पैरा) बढ़ावें-कातन्त्र के प्रख्यात भाग के सप्तम अष्टम पाद की दुर्गवत्ति की राम
किशोर ने मङ्गला नाम्नी टीका रची थी।' इस मङ्गला टीका ३७६ १० में पदशेषकार स्मृत है।'
__पृष्ठ ५६७, पं० १५ के आगे नया सन्दर्भ बढ़ावें--'नन्दन मिश्र कृत तन्त्रप्रदीपोद्योतन के ही दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य द्वारा निदिष्ट हस्तलेख के अन्त में न्यासोद्दीपन नाम से उल्लेख है। उन्हीं के लेखानुसार यह तन्त्रप्रदीप की व्याख्या है। इस अवस्था में यह विचारणीय हो जाता है कि दोनों हस्तलेखों में ग्रन्थकार नन्दनमिश्र के पिता के नामों में अन्तर क्यों है ? क्या यह सम्भव हो सकता है कि दोनों नाम एक ही व्यक्ति के हो ? एक धनेश्वर जो वोपदेव का गुरु था, ने महाभाष्य पर चिन्तामणि नाम की व्याख्या लिखी थी। इसका उल्लेख पूर्व पृष्ठ ४३४ पर कर चके हैं । क्या धनेश्वर नाम के ही दो व्यक्ति हए अथवा तन्त्रप्रदीपोद्योतन तथा महाभाष्य की चिन्तामणि व्याख्या का लेखक एक ही धनेश्वर है ? भावी इतिहास लेखकों को इन पर गम्भीरता से विचार करना चाहिये।'
पृष्ठ ५६८, पं० १५ से पृष्ठ ५६६, पं० ६ तक के विषय में
मल्लिनाथ ने कुमारसम्भव की टीका में वोपदेव को उद्धृत किया है। वोपदेव ने हेमाद्रि सचिव के कहने से उसके लिये भागवतपुराण की 'हरिलीलामृत' नाम्नी सूची का निबन्धन किया था, यह हम आगे वोपदेव के प्रकरण में लिखेंगे । इस विषय में इसी ग्रन्थ का आगे पृष्ठ
१. कातन्त्र विमर्श, पृष्ठ १५ । २. कातन्त्रविमर्श, पृष्ठ २७२, संख्या ६५ ।