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१२६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
अत्रेदमवधेयम्-लोलुवः पोपुवः इत्यादोनि प्रकृतसूत्रोदाहरणानि यानि वृत्तिकारर्दशितानि तानि सूत्रं विनापि साधयितुं शक्यन्ते इत्येतावन्मात्राभिप्रायेण 'अनारम्भो वा' इत्यादिभाष्यं प्रवृत्तम्, न तु सर्वथा सूत्रं मास्त्विति ।
अर्थात्-यहां यह ध्यान में रखना चाहिये कि वृत्तिकारों ने इस सूत्र के जो लोलुवः पोपुवः उदाहरण दिये हैं, वे सूत्र के विना भी सिद्ध किये जा सकते हैं। इतने ही अभिप्राय से अनारम्भो वा इत्यादि भाष्येप्रवृत्त हुआ है । सर्वथा सूत्र न होवे, इस प्राशय से प्रवृत्त नहीं
हुआ है। १० इस विषय में विशेष विचार हमारे द्वारा विरचित महाभाष्य की हिन्दी व्याख्या भाग १, पृष्ठ २१५ तथा २८७ में देखें।
पृष्ठ ३३८, पं० १८ 'संकेत किया है' इससे आगे बढ़ावें'कातन्त्र की दुर्गटीका २।२१५५; २।१५; ३।३।३१; ३।४।२३;
३।६।३; ३।८।१३ में पदकार के नाम से महाभाष्य के वचन उद्धत हैं १५ (द्र० कातन्त्रसूत्र विमर्श, पृष्ठ २७२) ।
__पृष्ठ ३६४, पं० ७-१२-इन श्लोकों के लिये तीसरे भाग के ७वें परिशिष्ट में पृष्ठ ६३-१०० तक छापा गया कृष्णचरित का उपलब्ध अंश देखें।
पृष्ठ ३६४, पं० १६ 'सर्वथा काल्पनिक नहीं है' इसके आगे बढ़ावें-'इसके लिये पूर्व पृष्ठ ३६१ पर निर्दिष्ट 'शाखा वा चरण' शीर्षक लेख देखें।
पृष्ठ ३८०, पं० १-२ में उद्धृत श्लोक का पाठान्तर इस प्रकार भी मिलता है
कौमुदी यदि नायाति वृथा भाष्ये परिश्रमः । २५ कौमुदी यदि चायाति वृयाभाष्ये परिश्रमः।
पृष्ठ ४३४, पं० १७ 'मध्य होगा के आगे बढ़ावें-'इस विषय में विशेष इस ग्रन्थ के १७८ अध्याय में 'वोपदेव' के प्रकरण में देखें। एक धनेश्वर ने सारस्वत व्याकरण पर क्षेमेन्द्र द्वारा लिखित 'टिप्पण'
१. हमारा हस्तलेख, पृष्ठ २७३,२७४ तथा 'महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' ३० (पाण्डिचेरी से मुद्रित) भाग १, पृष्ठ ३०६ ।