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१९६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पृष्ठ १९९, पं० १४ (६७) इति परिभाषा । पृष्ठ ७०, के स्थान में शोधे-'(पिङ्गलसूत्र ३३३३) इति परिभाषा (७९)।' द्र० रामलाल कपूर ट्रस्ट संस्क०, पृष्ठ २६ ।
पृष्ठ २०१, पं० १२-१६ तक का सन्दर्भ (पैराग्राफ) कुछ अस्पष्ट है, उसे इस प्रकार पढ़ें
डा. वर्मा का मिथ्या लेख-डा० सत्यकाम वर्मा ने अपने संस्कृत व्याकरण का उद्भव और विकास' ग्रन्थ के पृष्ठं १२६-१२८ पर कौत्स के सम्बन्ध में लिखते हुए मेरे नाम से मिथ्या अभिप्राय उद्धृत
करके पालोचना की है। वे लिखते हैं-'मीमांसक एक नये परिणाम १० पर जा पहुंचे हैं। वे लिखते हैं -यास्क निरुक्त (१।१५) में कौत्स का
उल्लेख करता है। महाभाष्य (३।२।१०८) के अनुसार कौत्स पाणिनि का शिष्य था-उपसेदिवान् कौत्सः पाणिनिम् ।' पुनः पृष्ठ १२७ पर लिखते हैं—'अतः मीमांसक की रीति से यास्क प्रोक्त कौत्स को
पाणिनि का शिष्य सिद्ध करने में कोई महत्त्वपूर्ण उपलब्धि न होगी। १५ यदि कौत्स नाम अनेक का हो सकता है। तब पाणिनीय कौत्स अन्यों
से पृथक ही क्यों न माना जाए ?' ____ पाठक हमारे पूर्व सन्दर्भ को ध्यान से पढ़ें। हमने कहीं पर भी यास्कोद्धृत कौत्स को पाणिनि-शिष्य कौत्स नहीं लिखा । हम तो
निरुक्त गोभिल गृह्यसूत्र आदि ग्रन्थों में उद्धृत कौत्सों को पाणिनि१. शिष्य कौत्स से मुक्तकण्ठ से पृथक् मान रहे हैं । हमने स्पष्ट लिखा है. 'रघवंश के अतिरिक्त जिन ग्रन्थों में कौत्स उद्धृत हैं, वे सब पाणिनि से पूर्वभावी हैं इतना स्पष्ट निर्देश करने पर भी श्री डा० वर्मा ने यह कैसे लिख दिया कि 'मीमांसक दोनों को एक मानता है ?' प्रतीत होता
है-डा० वर्मा को मेरा खण्डन करना मात्र अभीष्ट था, चाहे यथार्थ १ उद्धरण वा मत देकर करें, चाहे मिथ्या रूप से लिख कर । डा० वर्मा
ने अपने ग्रन्थ में बहुत्र मेरे नाम से मिथ्या मत वा उद्धरण देकर खण्डन करके अपना पाण्डित्य प्रदर्शन किया है।
पृष्ठ २५६, पं० २२ 'किया है' के आगे बढ़ावें-'पाणिनीयसूत्रात्मक शिक्षा के दोनों पाठों का प्रकाशन इस ग्रन्थ के तृतीय भाग ३० में ५३ परिशिष्ट में पृष्ठ ६२-८१ तक किया है।