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दसवां परिशिष्ट
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पृष्ठ ५४, पं० १६ पृष्ठ ३८' के स्थान में 'पृष्ठ ३४ शोधें । पृष्ठ ६४, पं० १२ ' मिलता है' के आगे बढ़ावें - 'बृहस्पति ने नारद को सामगान का प्रवचन किया था - बृहस्पतिर्नारदाय ( साम ब्रा० ३।६।३)
पृष्ठ ७८, पं० १२ १७. सुपद्म' से आगे बढ़ावें - ' १८० विनयसागर भोजव्याकरण (वि० सं० १६५० - १७०० ) ।'
पृष्ठ ८७, पं० १७ 'उल्लेख है' के आगे बढ़ावें - 'ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणी में ऋ० मं० १०, सू० ४७ तथा आगे के कुछ सूक्तों का ऋषि इन्द्र वैकुष्ठ मिलता है । तदनुसार इन्द्र की माता का एक नाम 'विकुण्ठा' भी विदित होता है ।'
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पृष्ठ ε१, पं० १६ 'सोमेश्वर सूरि' के स्थान में 'सोमदेव सूरि' होना चाहिये ।
पृष्ठ ९७, पं० ४ ' ( ८५०० वि० पू० ) ' के स्थान में ' (१५०० वि० पू० ) ' होना चाहिये ।
पृष्ठ ६८, पं० ३० 'शाकटायन की लघुवृत्ति' के स्थान में 'शाकटायन की अमोघा और लघुवृत्ति' इस प्रकार शोधें ।
पृष्ठ ११३: पं० १६ ‘कृछ्रम् इति' के आगे बढावें - ( द्र० भाग १, पृष्ठ १०१-१०२ )
पृष्ठ ११८, पं० १४ 'पूर्व निर्दिष्ट त्रिक' के स्थान में शोघें- 'पूर्व निर्दिष्ट (पृष्ठ ११६, पं० १२) त्रिकं ।
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पृष्ठ १३४, पं० १-६ के सन्दर्भ में सर्वत्र शन्तनु के स्थान में शान्तनव नाम होना चाहिये । फिट् सूत्र- प्रवक्ता के रूप में शन्तनु और शान्तनव दोनों नाम उपलब्ध होते हैं । इसके निर्णय के लिये इसी ग्रन्थ के द्वितीय भाग के पृष्ठ ३४६-३४६ देखें | वहां विस्तार से इस पर विचार किया है ।
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पृष्ठ १३६, पं० २८ 'व्याकरण परिशिष्ट, पृष्ठ ८२' के स्थान में 'व्याकरण लघुवृत्ति परिशिष्ट, ८२, तथा अमोघावृत्ति २०४ २२ गणपाठ ।' इस प्रकार पाठ शोधें ।
पृष्ठ १७१, पं० १६ - २० 'प्रपाणिनीयप्रामाणिकता' के स्थान में 'पाणिनीयप्रमाणता' नाम शोधें ।
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