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________________ दसवां परिशिष्ट संशोधन परिवर्तन परिवर्धन २० प्रथम भाग पृ० १७, पं० ५ 'भ और' से आगे बढ़ावें - 'हकार से उत्तरवर्ती वकार का हुकार से पूर्व प्रयोग होने पर वकार को बकार ..... । इस पर टिप्पणी - हकार से उत्तरवर्ती म, यवल वर्णों का मराठी आदि भाषाओं में पूर्व प्रयोग देखा जाता है। हमारे विचार में हकारोत्तरवर्ती म, य, व, ल का हकार से पूर्व उच्चारण पाणिनि के समय में भी होने लग गया था ( लेखन में ये वर्ण हकार से उत्तर ही लिखे जाते १० हैं ) । उसी के आधार पर पाणिनि ने कि ह्यलयति' में हे मपरे वा ( प्रष्टा ० ८|३ | २६ ) सूत्र से 'किम ह्यलयति' में तथा वार्तिककार ने 'यवलपरे यवला वा' (महा० ८।३।२६) वार्तिक से कि ह्यः, कि 'यति, कि ह्लादयति' 'कियँ, ह्यः, किव् ह्वलयति, किल् ह्लादयति' नुनासिक का विधान किया है । म् य् व् ल् का हकार से १५ उत्तर प्रयोग होने पर इस प्रकार की सन्धि उपपन्न ही नहीं हो सकती क्योंकि अनुस्वार और म, य, व, ल के मध्य में हकार विद्यमान है । सभी सन्धियां स्वाभाविक उच्चारण के अनुसार होती हैं । हकार का मध्य में प्रयोग होने पर मकार और सानुनासिक य वल का उच्चारण सम्भव ही नहीं है । पृष्ठ ४३, पं० ३० प्रकाशित हो गया है' से आगे बढ़ावें - 'यह प्रयोग स्वामी ब्रह्ममुनि सम्पादित भारद्वाज विमान शास्त्र के पृष्ठ ७४ पर है ।' पृष्ठ ४७, पं० ४ से आगे नया सन्दर्भ बढ़ायें - ' इसी प्रकार तृतीयैकवचन 'टा' के टायाः टायाम् ( द्र० महाभाष्य प्रदीप ११११३६ ) प्रयोग देखा जाता है । यहां भी 'टा' प्रत्यय के प्रबन्त न होने से 'याद' काम प्राप्त नहीं होता है ।' २५
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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