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नौवां परिशिष्ट २७. (पृ० १८०) टि० १३४ पृ० (३२६)-यु० मी० (१६६७। ८ : भूमिका पृ० ६६; १९७३:३:६३६) का सुझाव है कि पद्यात्मक शिक्षा सूत्रात्मक शिक्षा पर प्राधृत है । परन्तु उन्होंने कोई ठोस हेतु नहीं दिये।
२८. (पृ० १८१)-यु० मी० (१९६७/८ भूमिका पृ० ७1) ने ५ भी घोष के आक्षेपों का उत्तर दिया है। परन्तु यहां उन्होंने अपने विस्तृत हेतु नहीं दिये । इस के स्थान में, उन्होंने एक लेख का संकेत किया है, जो सूझे सुलभ नहीं हो सका, जिस में उन्होंने घोष के कथन
का मिथ्यात्व दर्शाया है। ___२९. (पृ० २४५) टि० ३४४ (पृ० ३४७)-राघवन (१९५०) १० ने रुय्यक के अलङ्कार सर्वस्व में प्रदीप के उद्धरण के आधार पर प्रदर्शित किया कि कैय्यट की उत्तरसीमा १०५० ई० है। यु० मी० (१९७३/१:३६३-६६t) ने कैय्यट के काल विषयक साक्ष्य पर विचार किया है और उसे संवत् १०६० (१०३३।३४ ई०) स्थापित । किया है । रेणु ने ११वीं शताब्दी को कैयट का उचित काल माना है १५
और यही सामान्यतः मान्य काल है। यह सम्भव है कि कैयट इससे कुछ प्राचीन हो।
३०. (पृ० २४५) टि० ३४७(पृ० ३४७)-यु० मी० (१९७३१ १:३५६-४३३४) ने महाभाष्य की टोका उपटीकाओं का विस्तृत विवरण दिया है। . ३१. (पृ० २६२) टि० ३९५ (पृ० ३५२)-यु० मी० (१९७३: १:२३६-४०; ३:८२-६२*) ने द्वितीय सन्दर्भ में पाणिनि कृत कहे
+ यह हमारे द्वारा सम्पादित 'शिक्षा-सूत्राणि' की भूमिका की पृष्ठ संख्या है।
प्रस्तुत संस्करण, पृष्ठ संख्या ६३ ।। यह लेख पटना से प्रकाशित होने वाली 'साहित्य' नाम्मी पत्रिका के र सन १९५६ के अङ्क १ में छपा था। उसका शीर्षक है -मूल पाणिनीय शिक्षा' । शीघ्र प्रकाशित होने वाले 'वेदाङ्ग-मीमांसा' ग्रन्थ में यह लेख छपेगा।
प्रस्तुत संस्करण, भाग १, पृष्ठ ४२०-४२४ । के प्रस्तुत संस्करण, भाग १, पृष्ठ ३८५-४७४ । * प्रस्तुत संस्करण, भाग १, पृष्ठ २५८-२५६; भाग ३, पृष्ठ ८२-६२। २०