________________
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास जाने वाले जाम्बवती विजय काव्य से उपलभ्यमान सन्दर्भो को सुविधा पूर्वक संगृहीत किया है। ____३२. (पृ० २६५) टि० ४०५ (पृ० ३५३)-यु० मी० (१९७३: १:३३७-५०*) ने पतञ्जलि के काल का निर्धारण करने के लिए महाभाष्य तथा अन्य ग्रन्थों में प्राप्त लगभग सभी साक्ष्यों पर विमर्श किया है। वे स्वीकार करते हैं कि पतञ्जलि पुष्यमित्र का समकालीन था । परन्तु उनका मत है कि पुष्यमित्र कोल सामान्यतः स्वीकृत काल की अपेक्षा पर्याप्त प्राचीन है।
[निष्कर्षः-इस प्रकार साक्ष्य पूर्णतः प्रमापक नहीं है, परन्तु १० गम्भीर विचार से यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि पतञ्जलि
ई० पू० द्वितीय शताब्दी में विद्यमान था।] पृ० २६६।। ( [निष्कर्षः-पाणिनि, कात्यायन तथा पतञ्जलि के काल के लिए साक्ष्य पूर्णतः प्रमापक नहीं है और व्याख्या पर आश्रित है। परन्तु मैं
समझता हूं कि एक बात निश्चित है और वह है कि उपलब्ध साक्ष्य १५ पाणिनि के काल को ई० पू० चतुर्थ शताब्दी के प्रारम्भ या मध्य के पश्चात् ले जाने की अनुमति नहीं देता । पृ० २६८१]
[पाणिनि यास्क से पूर्ववर्ती है; थीमे आदि का यह मत सिद्ध नहीं। परन्तु पाणिनि-यास्क के पूर्वापरत्व के विषय में अभी निश्चय
पूर्वक नहीं कहा जा सकता । पृ० २७२-७३६] २०
३३. (पृ० २८४)-भागवृत्ति का काल नवीं शताब्दी युक्त प्रतीत होता है, और कैयट कृत प्रदीप में विमलमिति के एक सम्भावित मत के संकेत (यु० मी० : १६६४/६५:१०-११) से इसको समर्थन मिलता है।६६
टि० ४६६ (पृ० ३५६)-यु० मी० (१९७३:१:४७१) ने २५ इससे पूर्वकाल का ग्रहण किया है :सं०७०२-७०५ (६५५-६५६ई०)।
* प्रस्तुत संस्करण, भाग १, पृष्ठ ३६५-३७७ ।
यह पृष्ठ संख्या 'पाणिनि: ए सर्वे आफ रिसर्च' ग्रन्थ की है। + यह जार्ज कार्डेना का मत है।
यह पृष्ठ संख्या हमारे द्वारा संकलित का प्रकाशित भागवृत्ति-संकलनम् ३० की है।
£ प्रस्तुत संस्करण, भाग १, पृष्ठ ५१४.-५१५ ।