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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
२१६-१८) यह प्रदर्शित करने के लिए दिये हैं कि काशिका के रचनाकारों ने स्वयं महाभाष्य में कथनों के आधार पर ऐसे परिवर्तन नहीं किये । इन में से पहले पर विचार करें। काशिका ३।३।१२२ सूत्र पाठ है-अध्यायन्यायोद्यावसंहाराधारावायाश्च । परन्तु मूल सूत्र रहा होगा-अध्यायन्यायोद्यावसंहाराश्च, आधार एवं आवाय से रहित । ३।३।१२१ सूत्र पर कात्यायन अपने वात्तिक में सुझाव देता है कि घत्र विधायक सूत्र में 'अवहार, आधार, आवाय' का भी उपसंख्यान करना चाहिये । स्पष्ट है, काशिका इस सूत्र में अवहार का
संग्रह नहीं करती। इसके बजाय 'च' से अनुक्त का संग्रह किया जाता १० है जिस से अवहार सिद्ध हो जाता हैं । कीलहान ने केवल यह कहा
है कि 'अष्टा० ३।३।१२२ में मूलतः आधार तथा आवाय शब्द नहीं थे, जो पिछले सूत्र पर कात्यायन के वात्तिक से प्रविष्ट किये गये। दूसरी ओर यु० मी० (१९७३ : १ : २१६-१७*) का हेतु है कि
कात्यायन के ग्रागर पर काशिका प्रक्षेप नहीं कर सकती थी, क्योंकि १५ परिवर्धन ठीक वही नहीं है जिसका सुझाव वात्तिक में दिया गया है।
इस हेतु की शक्तिक्षीण हो जाती है, यदि कोई यह स्वीकार करता है कि काशिका चन्द्रगोमी के व्याकरण से प्रभावित है। चन्द्रगोमी के सूत्र १।३।१०१ पर वृत्ति में ठीक वे ही शब्द अध्याय न्याय उद्याव
सहार आधार आवाय दिये गये हैं जो काशिका सूत्र में हैं। टि० [मैं २० मानता हूं कि वृत्ति चन्द्रगोमीकृत है, जैसा कि प्रायः विद्वान् स्वीकार
करते हैं । इस विषय को मैं यहां विविक्त नहीं कर सकता, इस विषय पर आधुनिकतम अध्ययन बिर्वे (१९६५) का है] य० मी० (१९७३: १:२१८-२०%) का हेतु है कि काशिका चान्द्र व्याकरण से प्रभा
वित नहीं है। प्रकृत पाणिनीय सूत्र के सम्बन्ध में वे कहते हैं २५ (१९७३ : १ : २१८ . . ) कि चान्द्र व्याकरण में तत्सम सूत्र नहीं है,
यद्यपि ३।३।१२१ पर कात्यायन के वात्तिक के कुछ शब्द वृत्ति में दिये गये हैं। इस हेतु की शक्ति क्षीण हो जाती है यदि कोई स्वीकार
£ प्रस्तुत संस्करण, पृष्ठ २३४-२३५ । * प्रस्तुत संस्करण, पृष्ठ २३४-२३५॥ * प्रस्तुत संस्करण, २३५-२३७ । .. प्रस्तुत संस्करण, पृष्ठ २३६ (१) ।
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