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________________ ११२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास काशकृत्स्न के कहे जाने वाले सन्दर्भांशों का सङ्कलन योग्यतापूर्वक किया है और उनकी व्याख्या रची है । ... यु० मी० ( १९६५ / ६ ए) ने टीका का संस्कृत में अनुवाद किया है । इस विद्वान् ( १९६५ / ६ बी : भूमिका पृ० ११, १६७३ : १ : १११-१४१) ने इस काशकृत्स्न को पाणिनि से पूर्ववर्ती समझने के लिए ग्यारह हेतु भी उपस्थित किये हैं । मैं यहां उन में से कुछ पर विचार करता हूं, जिन को मैं प्रबलतम समझता हूं । [ ० १,२,४,५ का सारांश ] ...... मैं नहीं समझता कि ऐसे हेतु इस बात (पूर्ववर्तित्व) को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं। गणपाठ में काशकृत्स्न का पाठ इस से अधिक सिद्ध नहीं १० करता कि पाणिनि काशकृत्स्न के व्याकरण से परिचित था, जैसे उस में यास्क की उपस्थिति सिद्ध करता है कि पाणिनि यास्क के तिरुक्त को जानता था । जहां वेदान्तसूत्र का सम्बन्ध है, अभ्युपगमवाद से यह स्वीकार करते हुए कि वे अपने वर्तमान रूप में पाणिनि से पूर्वकालिक हैं, जिसे सब विद्वान् स्वीकार नहीं करेंगे, इस से यह अनुगत १५ नहीं होता कि उन में उल्लिखित काशकृत्स्नं वही है जिस वैयाकरण प्रकृत ग्रन्थों की रचना की थी । पतञ्जलि के कथन के विषय में, इससे प्रकट होता है कि पतञ्जलि किसी प्राचीन प्राचार्य काशकृत्स्न द्वारा प्रोक्त व्याकरण से परिचित था, परन्तु इससे यह प्रदर्शित नहीं होता कि जो पाठ हमारे पास हैं वे पाणिनि से पूर्वकालिक हैं । २० अन्त में धातु पाठ सम्बन्धी हेतु सामान्य तथा स्पष्ट है। + प्रस्तुत सं० पृष्ठ १२१,१२५ । २५. $ श्री जार्ज कार्डीनो ने यह तो लिख दिया कि पतञ्जलि किसी प्राचीन आचार्य द्वारा प्रोक्त व्याकरण से परिचित था' परन्तु हमने पृष्ठ १०८ ( प्रस्तुत सं० पृष्ठ ११८) पर लिखा है पतञ्जलि ने काशकृस्नि आचार्य प्रोक्त मीमांसा का असकृत उल्लेख किया है । महाकवि भास ने यज्ञफल नाटक में काशकृत्स्न मीमांसा शास्त्र का उल्लेख किया है' (मूल पाठ नीचे टि० में दिये हैं) की ओर ध्यान नहीं दिया । सम्भव है जार्ज कार्डीना को काशकृस्नि और काशकृत्स्न, जो भारतीय इतिहास के अनुसार (पाणिनि और पाणिन के समान ) एक ही व्यक्ति के नाम हैं, स्वीकार्य न होंगे। यदि ऐसा है तो यह उनके गहन अनुशीलता के अभाव का द्योतक है । वस्तुतः वेदान्त दर्शन में स्मृत काशकृत्स्न मीना प्रवक्ता का शकृस्नि अपरनाम काशकृत्स्न ही है । भारतीय इतिहास में ३०
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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