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नौवां परिशिष्ट सं० व्या० शास्त्र के इतिहास पर श्री जार्ज काण्?ना का अभिमत
- [श्री जार्ज कार्डोना का 'पाणिनि ए सर्वे आप रिसर्च' (=पाणिनि, अनुसन्धान का सर्वेक्षण) नामक ग्रन्थ सन् १९७६ में प्रकाशित हुआ है। उसमें देश विदेश के जिन व्यक्यिों ने पाणिनीय व्याकरण पर कार्य किया है, चाहे वह लेख निबन्ध अथवा ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित हुआ है उस सब पर लिखा है । यह ग्रन्थ एक प्रकार से पाणिनीय व्याकरण सम्बन्धी अनुसन्धान कार्य का कोश
है । इस दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस प्रन्थ में मेरे द्वारा लिखित १० संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास और सम्पादित वा प्रकाशित ग्रन्थों की भूमिका और टिप्पणियों तक पर अपना अभिमत प्रकाशित किया है।
यद्यपि उनका अभिमत सर्वत्र मुझे स्वीकृत नहीं है, विशेष कर काल सम्बन्धी अभिमत । पुनरपि प्रत्येक ग्रन्थ, लेख वा निबन्ध पर उन्होंने जिस
परिश्रम से विचार किया है, वह प्रत्येक भावी पक्ष-विपक्ष के विद्वानों के लिये १५ उपयोगी है । इस कारण मैं अपने कार्य के सम्बन्ध में लिखे गये उनके अभिमत को याथातथ्य रूप में उपस्थित कर रहा हूं।
श्री जार्ज कार्डोना ने मेरे 'सं० व्या० शास्त्र का इतिहास' ग्रन्थ के सन् १९७३ ई० के छपे संस्करण का उपयोग किया है। सर्वत्र उसी की पृष्ठ संख्या
दी है। प्रस्तुत संस्करण में उक्त पृष्ठ संख्या के परिवर्तित हो जाने से पाठकों २० को सुगमता के लिये नीचे टिप्पणी में प्रस्तुत नये संस्करण (सन् १९८४ ई०) __ की पृष्ठ संख्या भी दे रहा हूं।
प्रत्येक सन्दर्भ के प्रारम्भ में ( ) कोष्ठक में दी गई पृष्ठ संख्या 'पाणिनिः ए सर्वे प्राफ रिसर्च' अन्य की है । सन्दर्भ में किसी शब्द के ऊपर
दी गई संख्या उनकी टिप्पणी की संख्या है। उस टिप्पणी का पाठ भी उस ५ उस सन्दर्भ के प्रागे ही ग्रन्थ की पृष्ठ संख्या देकर दे दिया है। टिप्पणी वाले
संदर्भ के प्रारम्भ में तीन संख्याएं हैं । प्रथम ( ) कोष्ठक में निर्दिष्ट