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________________ १५ २० २५ हैद ३. कालिदासः - संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास तस्याभवन्नरपतेः कविराप्तवर्णः, श्री कालिदास ' इति योऽप्रतिमप्रभावः । दुष्यन्तभूपतिकथां प्रणयप्रतिष्ठां, रम्याभिनेयभरितां सरसां चकार ॥१५॥ शाकुन्तलेन स कविर्नाटकेनाप्तवान् यशः । वस्तुरम्यं दर्शयन्ति त्रीण्यन्यानि लघूनि च ॥ १६ ॥ ४. [ श्रश्व ] घोष: जन्मनाऽर्योऽभवद् विद्वान् सौगतस्तर्कवारिधिः । सौनन्द' बुद्धचरिते महाकाव्ये चकार यः ॥१७॥ तस्य शूरकवेर्घोष इति नामाभवत् ततम् । धर्मव्याख्यानरूपान् स नव ग्रन्थानरी रचत् ॥ १८ ॥ सौगतानां महासंसत् तुरीयाऽभून्महोज्ज्वला । तस्यां सभ्यो बभूवायं विश्वविद्वच्छिरोमणिः ॥ १६ ॥ १. तस्य = शद्रकस्य राज्ञः । २. कालिदास नाम से प्रसिद्ध अनेक कवि हो चुके हैं। इसी प्रकरण के अन्त में हरिषेण को भी कालिदास नाम से स्मरण किया है ( द्र० श्लोक २४) । संस्कृत साहित्य में तीन कालिदासों का वर्णन मिलता है एको न जीयते हन्त कालिदासो न केनचित् । शृङ्गारे ललितोद्गारे कालिदासत्रयी किमु ॥ राजशेखर के नाम से उद्धृत ( द्र० बलदेव उपाध्याय कृत संस्कृत कवि चर्चा, पृष्ठ ३५, प्र० स० ) । सम्प्रति कालिदास के नाम से प्रसिद्ध सभी ग्रन्थों को एक कविविरचित मानने से ही कालिदास के काल के निर्धारण में कठिनाई हो रही है । ३. विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र ये दो नाटक इस कालिदास के सम्प्रति उपलब्ध होते हैं। तीसरा नाटक सम्प्रति अनुपलब्ध है । ४. अश्वघोष के नाम से प्रसिद्ध काव्य का नाम 'सौन्दरानन्द' प्रसिद्ध है । क्या यहां छन्दोवा 'सौनन्द' लघुरूप में प्रयुक्त हुआ है अथवा इस नाम का कोई स्वतन्त्र काव्य था ?
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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