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________________ १० १५ ६४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास काव्येन रुचिरेणैव ख्यातो वररुचिः ' कविः ॥ १४ ॥ न केवलं व्याकरणं पुपोष दाक्षीसुतस्येरिततवत्तिकैर्यः । काव्येऽपि भूयोऽनुचकार तं वै कात्यायनोऽसौ कविकर्मदक्षः ॥ १५ ॥ ४. व्याडि: रसाचार्यः कविर्व्याडिः शब्दब्रह्म कवाङ्मुनिः । दाक्षीपुत्रवचोव्याख्यापटुर्मीमांसकाग्रणीः ।। १६॥ बलचरितं कृत्वा यो जिगाय भारतं व्यासं च । महाकाव्य विनिर्माणे तन्मार्गस्य प्रदीपमिव ॥ १७ ॥ ५. देवलः - सुयशा अभवद् भूमौ बृहस्पतिसमः कविः । यत्काव्यमिन्द्रविजयं भासते देवलोऽन्त्यजः ॥ १८ ॥ ६. पतञ्जलिः - विद्ययद्रिक्तगुणया भूमावमरतां गतः । पतञ्जलिर्मुनिवरो नमस्यो विदुषां सदा ॥ १६ ॥ कृतं येन व्याकरणभाष्यं वचनशोधनम् । धर्मावियुक्ताश्चरके' योगारोगमुषः कृताः ॥२०॥ १. वररुचि कात्यायन के विषय में इसी ग्रन्थ के भाग १, पृष्ठ ३३७२० ३३८ देखें । २. व्याडि सहित प्राचीन २७ रसाचार्यों के विषय में इसी ग्रन्थ के भाग १, पृष्ठ ३०३ - ३०४ देखें । ३. 'चरक' वैशम्पायन मुनि का अपर नाम है । द्र० काशिका ४ | ३ | १०४ ॥ इस नाम के कारण के लिये देखिये हमारा 'दुष्कृताय चरकाचार्यम्' लेख २५ ( वैदिक सिद्धान्त मीमांसा (पृष्ठ १७९ ) श्रायुर्वेद की चरक संहिता इसी चरक = वैशम्पायन द्वारा प्रति संस्कृत है । वैशम्पायन - चरक के शियों द्वारा प्रोक्त कृष्ण यजुर्वेद की सभी शाखाओंों के अध्येता चरक कहाते हैं । पतञ्जलि मुनि का चरक चरणान्तार्गत काठक संहिता के साथ संबन्ध था ( द्र० यही ग्रन्थ भाग १, पृष्ठ ३६१-३६३) । 1 =
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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