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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
घ - यथा तु भाष्यवृत्तिन्यासपदमञ्जर्यादिषु तथायं धातुर्नति प्रतीयत इति जीर्यतावुपपादितम् । आत्रेय मैत्रेय पुरुषकारादिषु दर्शना - दिहास्माभिलिखितम् । धातुवृत्ति पृष्ठ ३६६ ।।
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प्रर्थात् - जैसा भाष्य, वृत्ति ( काशिका ), न्यास, पदमञ्जरी ५ आदि में उल्लेख है, तदनुसार यह धातु नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है, यह हमने जीर्यति ( जुष् वयोहानौ दिवादि ) धातु पर लिखा है । आत्रेय, मैत्रेय, पुरुषकार आदि के ग्रन्थों में दिखाई पड़ने से हमने इसे यहां ( क्रयादि गण में) लिखा है ।
ङ - एते पञ्चदश स्वामिकाश्यपानुसारेण लिख्यन्ते । धातुवृत्ति १० पृष्ठ २६३
अर्थात् - ये पन्द्रह धातुएं हमने [ क्षीर ] स्वामी काश्यप आदि के अनुसार लिखी हैं ।
च - तत्राद्यौ बृहिश्च मंत्रेयानुरोधेनास्माभिर्दण्ड के पठितः । धातुवृत्ति पृष्ठ ३९३ ।
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अर्थात् - प्रारम्भिक (दो - पट, पुट ) तथा वृहि ये तीन धातुएं मैत्रेय आदि के अनुरोध से हमने इस दण्डक ( = पट पुट लुट आदि ) में पढ़ी हैं ।
छ -- यद्यपि मैत्रेयेणादितस्त्रय इदित उखिवखिमखयः मूर्धन्यादि - खिरनिदित इखिश्च न पठ्यते, तथापि इतराने कव्याख्यातृणां २० प्रामाण्यादस्माभिः पठितः । धातुवृत्ति पृष्ठ ४५६ ।
अर्थात् - यद्यपि मैत्रेय ने प्रारम्भ की तीन इदित् उखि वखि मखि, मूर्धन्यादि नखि, प्रनिदित इख नहीं पढ़ी, पुनरपि अन्य अनेक व्याख्याताओं के अनुरोध से इन्हें हमने पढ़ा है ।
ज - डुकृञ् करणे इति भूवादौ पठ्यते । अनेन प्रकारेणास्माभिर्धातुवृत्तावयं धातुर्निराकृतः । ऋग्भाष्य ११८२१ ॥
अर्थात् - डुकृञ् करणे इसे भूवादि में पढ़ते हैं। ..... इस प्रकार हमने धातुवृत्ति में इस धातु का पाठ हटा दिया हैं । '
१. धातुवृत्ति में 'घृन् धारणे' धातु के व्याख्यान के अनन्तर 'प्रत्र केचित् आदि लिखा है ( द्र० पृष्ठ कृञ् करणे घातु पठन्ति तदनार्षम् '
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