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________________ २० ६६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास की वृत्तियां दाक्षिणात्य पाठ पर हैं। इनमें भी प्राच्य पाठ वृद्ध पाठ है, अन्य दोनों लघु पाठ हैं । २५ धातुपाठ के त्रिविध पाठ - इसी प्रकार सार्थ धातुपाठ के भी देशभेद से तीन प्रकार के पाठ हैं। यथा प्राच्य पाठ - धातुपाठ के प्राग्देशीय मैत्रेय प्रभृति व्याख्याता जिस पाठ की व्याख्या करते हैं, वह प्राच्य पाठ है । न्यासकार भी प्राच्य पाठ को ही उद्धृत करता है । १० दाक्षिणात्य पाठ -- धातुपाठ का दाक्षिणात्य पाठ हमें साक्षात् उपलब्ध नहीं हुआ है, परन्तु दाक्षिणात्य पाल्यकीर्ति प्राचार्य (जन शाकटायन - प्रवक्ता) ने पाणिनि के जिस धातुपाठ का आश्रयण करके अपने धातुपाठ का प्रवचन किया, वह संभवतः दाक्षिणात्य पाठ था । पाल्य कीर्ति का घातुपाठ प्राच्य पाठ के साथ उतना नहीं मिलता, जितना उदीच्य पाठ के साथ । इससे अनुमान होता है, कि जैसे अष्टाध्यायी और पञ्चपादी उणादि के सूत्रों के उदीच्य और दाक्षिणात्य पाठ समान होने पर भी क्वचित् विषमता रखते हैं । उसी प्रकार धातुपाठ के उदीच्य और दाक्षिणात्य पाठ में प्रायिक समानता होने पर भी कुछ भेद रहा होगा। १५ धातुपाठ के पाठों का परिचायक चित्र उदीच्य पाठ - उदीच्य क्षीरस्वामी प्रभृति ने जिस पाठ पर अपनी वृत्ति लिखी है, वह उदीच्य पाठ है । धातुपाठ के जिन विविध पाठों का हमने ऊपर निर्देश किया है, उनका परिज्ञान निम्नाङ्कित चित्र से सुगमता से हो जाएगा द्वारा संपादित दशपादी के आधारभूत हस्तलेखों में 'क' संज्ञक हस्तलेख का पाठ क्षीरस्वामी के पाठ के साथ प्रायः मिलता है । अन्य हस्तलेखों के पाठ पञ्चपादी के दाक्षिणात्य पाठ के साथ समानता रखते हैं । १. तुलना करो - ' यष्टीकपारश्वधिको यष्टिपरशुहेतिका' ( अमरकोष २०७१ ) पर क्षीरस्वामी लिखता है - ' पर्वधः परशौ न दृष्ट: । अतो 'यष्टिस्वधितिहेतिको' इति काश्मीराः पठन्ति' । و
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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