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[८] इस ग्रन्थ द्वारा उत्तरवर्ती लेखकों तथा विद्यार्थियों को कुछ न कुछ सहायता प्राप्त हुई। . भारतीय आर्ष वाङमय-भारतीय प्राचीन आर्ष वाङ्मय उन परम-सत्यवक्ता नीरजस्तम शिष्ट प्राप्त पुरुषों द्वारा प्रोक्त अथवा रचित है जिनके लिए आयुर्वेदीय चरक संहिता में लिखा हैप्राप्तास्तावत्
रजस्तमोभ्यां निर्मुक्तास्तपोजानबलेन ये। येषां त्रिकालममलं ज्ञानमव्याहतं सदा ॥ प्राप्ताः शिष्टा विबुद्धास्ते तेषां वाक्यमसंशयम् । सत्यं, वक्ष्यन्ति ते कस्माद् असत्यं नोरजस्तमाः॥'
सूत्रस्थान, अ० ११, श्लोक १८, १६ । अर्थात्-जो रजोगुण और तमोगुण से रहित हैं, जिनको तप और ज्ञान के बल से त्रैकालिक अव्याहत निर्मल ज्ञान प्राप्त होता है, वे शिष्ट परम विद्वान् ‘प्राप्त' कहाते हैं । उनका वाक्य असंशय सत्य हो होता है। ऐसे रजोगुण और तमोगुण से रहित प्राप्त | सब एषणाओं से मुक्त होने के कारण] किस हेतु से असत्य कहेंगे ? ___ पाश्चात्य विद्वान् और उनके अनुयायी भारतीय -गत डेढ़-दो शताब्दी में पाश्चात्त्य विद्वानों ने राजनीतिक परिस्थितियों और ईसाई यहूदी मत के पक्षपात से प्रेरित होकर पूर्वनिर्दिष्ट परम सत्यवादी नीरजस्तम महापुरुषों द्वारा प्रोक्त अथवा रचित भारतीय आर्ष वाङ्मय और सत्य ऐतिहासिक परम्परा को असत्य अश्रद्धेय और अनैतिहासिक सिद्ध करने के लिए अनेक कल्पित वादों को जन्म दिया।
और उन्हें वैज्ञानिकता का चोला पहनाकर एकस्वर से भारतीय वाङमय, संस्कृति और इतिहास के प्रति अनर्गल प्रलाप किया । ब्रिटिश शासन ने राजनीतिक स्वार्थवश उन्हीं असत्य विचारों को सर्वत्र स्कूल कालेजों में प्रचलित किया। इसका फल यह हुआ कि स्कल और कालेजों में पढ़नेवाले, तथा पाश्चात्त्य विद्वानों की छत्रछाया में रहकर पीएच० डी० और डी० लिट् आदि उपाधियां प्राप्त करने वाले भारतीय भी पाश्चात्त्य रंग में पूर्णतया रंग गये। इससे भारतीय विद्वानों की स्वीय प्रतिभा प्रायः नष्ट हो गई, और