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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्यात (२) ६३ . नागेश की यह वस्तुत: भूल है। उसे सम्भवतः न तो संस्कृत वाङमय के द्विविध-पाठ-प्रवचनशैली का परिज्ञान था, और न अष्टाध्यायी तथा धातुपाठ के द्विविध-पाठ का ही। अतः जब वह भाष्य के उभयविध पाठों की संगति न लगा सका, तब उससे अर्धजरतीय न्याय से एक ही ग्रन्थ में कही अर्थनिर्देश-विरहित पाठ स्वीकार किया, और ५ कहीं अर्थनिर्देशसहित।
क्या अर्थ-निर्देश भीमसेन का है ? औत्तरकालिक अनेक पाणिनीय विद्वानों का कथन हैं कि पाणिनीय धातूपाठ में निर्दिष्ट अर्थ भीमसेन नामक किसी वैयाकरण ने पाणिनि के पश्चात् पढ़े हैं । यथा
१-नागेशभट्ट कैयट के 'न चार्थपाठः परिच्छेदकः, तस्यापणिनोयत्वात्' वचन की व्याख्या करता हुआ लिखता है-भीमसेनेनेत्यैतिह्यम् । प्रदीपोद्योत १॥३॥१॥
अर्थात् अर्थनिर्देश भीमसेन ने पढ़े हैं, यह ऐतिह्य में प्रसिद्ध हैं । २–भट्टोजिदीक्षित ने भी लिखा है
व-'तितिक्षाग्रहणं ज्ञापकं भीमसेनादिकृतोऽर्थनिर्देश उदाहरणमात्रम् ।' शब्दकौस्तुभ १।२।२०॥
ख-'न च या प्रापणे इत्याद्यर्थनिर्देशो नियामकः, तस्यापाणिनीयत्वात् । भीमसेनादयो ह्यर्थ निदिदिक्षुरिति स्मयते।' श० कौ० १॥३१॥
अर्थात् भीमसेन आदि ने अर्थ-निर्देश किया है, ऐसा परम्परा से स्मरण किया जाता है। ३-धातुप्रदीपकार मैत्रेयरक्षित भी लिखता है_ 'बहुनोऽमून् यथा भीमः प्रोक्तवांस्तद्वदागमात् ।'
धातुप्रदीप, पृष्ठ १॥ २५ अर्थात्-जैसे भीमसेन ने इनका प्रवचन किया है, उसी प्रकार आगम से।
१. अर्ध जरत्या: कामयन्ते अर्धं न । महाभाष्य ४११७८॥ इस पर कैयट लिखता है-मुखं न कामयन्ते, अङ्गान्तरं तु जरत्याः कामयन्ते ।
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