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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) ६१ विना श्वेधस्पर्ध इस प्रकार संहितापाठ से प्रवचन किया, और किन्हीं के लिए 'भू सत्तायाम् उदात्त: परस्मैभाषः, एध वृद्धौ' इस प्रकार । इसी कारण महाभाष्य में दोनों प्रकार के निर्देश उपलब्ध होते हैं।
लघु पाठ और वृद्ध पाठ-अर्थ-निर्देश के विना धातुओं का जो पाठ है वह लघु पाठ है, और अर्थनिर्देश-युक्त वृद्ध पाठ है।
अष्टाध्यायी के लघु और वृद्ध पाठ-भगवान् पाणिनि ने केवल धातुपाठ का ही लघु और वृद्धरूप विविध प्रवचन नहीं किया, अपितु अष्टाध्यायी का भी द्विविध प्रवचन किया था। वार्तिककार ने अष्टाध्यायी के जिस पाठ पर वार्तिक लिखे हैं, वह लघ पाठ हैं, और काशिका वृत्ति वृद्ध पाठ पर लिखी गई है। अष्टाध्यायी ने इन दोनों १० प्रकार के पाठों के विषय में इसी ग्रन्थ के पांचवें अध्याय (भाग १ पृष्ठ २३८, च० सं०) में लिख चके हैं । संस्कृत वाङमय में पचासों ऐसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जिनके ग्रन्थप्रवक्ता ने ही लघ और वृद्ध दो-दो प्रकार का प्रवचन किया था। किन्हीं-किन्हीं ग्रन्थों का तो लघु, मध्यम और वृद्ध तीन प्रकार का पाठ था ऐसा ज्ञात होता है। प्राचीन १५ आचार्यों ने अपने ग्रन्थों का दो-दो प्रकार से प्रवचन क्यों किया, इसका उत्तर भारत और महाभारत के विविध प्रवचन-प्रकरण में सौति ने इस प्रकार दिया हैविस्तीर्यंतन्महज्ज्ञानमृषिः संक्षिप्य चाब्रवीत् । इष्टं हि विदुषां लोके समासव्यासघारणम् ॥
आदिपर्व १।५१ । अर्थात् ऋषि ने विस्तार से महाभारत का उपदेश करके संक्षेप से (उपाख्यानों से रहित) भारत का उपदेश किया। क्योंकि लोक में समास-संक्षेप और व्यास-विस्तार दोनों प्रकार से ग्रन्थ का धारण करना विद्वानों को इष्ट है।
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१. सुश्रुत के त्रिविध पाठ थे-लघुसुश्रु त मध्यमसुश्रुत और वृद्धसुश्रुत । देखिए पं० सूरमचन्द्र कृत 'आयुर्वेद का इतिहास' भाग १, पृष्ठ २५५ । सम्भवतः भरत नाट्य शास्त्र के भी लघु (षट् साहस्र), मध्यम (द्वादश साहस्र) तथा वृद्ध (अष्टादश साहस्र, त्रिविध पाठ थे। द्र० कृष्णमाचारियर एम० ए० कृत हिस्ट्री आफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर, पृष्ठ ८१० पर टिप्पण।
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