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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का तिहास . अब हम धातुपाठ के पाणिनीयत्व में कतिपय प्रमाण उपस्थित करते हैं धातुपाठ के पाणिनीयत्व में प्रमाण ___ भगवान् पाणिनि ने शब्दानुशासन का प्रवचन करते हुए भवा५ दयो धातवः' (१।३।१) सूत्र से विज्ञापित खिलरूप धातुपाठ का भी प्रवचन किया था, इसमें अनेक प्रमाण हैं । यथा १-पाणिनि ने पुषादिद्युतादय लदितः परस्मैपदेषु (३।११५५); किरश्च पञ्चभ्यः (७।२।७५); शमामष्टानां दीर्घः श्यनि (७।३। ७४) इत्यादि अनेक सूत्रां में धातुपाठ के अन्तर्गत पठित धात्वनपर्वी १० को ध्यान में रखकर तत्तत् कार्यों का विधान किया है। इसी प्रकार धातुपाठस्थ धात्वनुबन्धों के द्वारा अपने शब्दानुशासन में अनेक कार्य दर्शाए हैं । यथा अनुदात्तङित प्रात्मनेपदम् (१।३ । ११); स्वरितजितः कर्बभिप्राये क्रियाफले ( १॥३७२ ); ड्वितः वित्रः ( ३३१८); १५ ट्वितोऽथुच (३।३।८६)। सूत्रपाठ में स्मृत धात्वनुपूर्वी और धातुपाठस्थ अनुबन्धों के द्वारा तत्तत् कार्यविधान से स्पष्ट है कि जैसे पाणिनि ने सूत्रपाठ से पूर्व सर्वादि प्रातिपदिकगण का प्रवचन किया, उसी प्रकार धातुपाठ का भी सूत्रपाठ से पूर्व प्रवचन अथवा संग्रथन किया। क्योंकि विना ० धातपाठ और धातुसंबंद्ध अनुबन्धों के पूर्व-प्रवचन के सूत्रपाठ का प्रवचन कथंचित भी नहीं हो सकता। २-महाभाष्यकार पतञ्जलि धातुपाठ को पाणिनि का ही प्रवचन मानते हैं, यह महाभाष्यकार के अनेक पाठों से अभिव्यक्त होता है । यथा२५ एवं हि सिद्ध सति यदादिग्रहणं करोति तज्ज्ञापयत्याचार्यः अस्ति च पाठो बाह्यश्च सूत्रात् । महा० ११३॥१॥ अर्थात्-इस प्रकार सिद्ध होने पर सूत्रकार ने जो आदि-ग्रहण किया है, उससे प्राचार्य बताते हैं कि धातुओं का पाठ है, और वह सूत्रपाठ से बाहर (पृथक्) है। ___ इस वचन से स्पष्ट है कि भगवान् पतञ्जलि सूत्रपाठ के समान धातपाठ को भी पाणिनीय मानते हैं।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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