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४२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
'छान्दसोऽयमित्यापिशलिः ।' धातुप्रदीप, पृष्ठ ८० ।
उपर्युक्त उद्धरणों से आपिशल धातुपाठ के विषय में निम्न बातें स्पष्ट होती हैं
१-आपिशलि प्राचार्य ने किसी धातुपाठ का प्रवचन अवश्य ५ किया था।
२-आपिशलि के धातुपाठ में कई धातुओं का स्वरूप पाणिनीय पाठ से भिन्न था।
३-धातु के स्वरूप में भिन्नता होने से प्रापिशलि के व्याकरण की प्रक्रिया में भी कुछ भेद था।
४-प्रापिशल धातुपाठ में पाणिनीय धातुपाठ के समान छान्दस धातुओं का भी पाठ था। ___५-आपिशल धातुपाठ में बहुत-सी धातुएं पाणिनीय धातुपाठ से अधिक थीं।
आपिशलि प्राचार्य के काल आदि के विषय में हम पूर्व प्रथम भाग १५ के चतुर्थ अध्याय में विस्तार से लिख चुके हैं
पाणिनि ने अपने तन्त्र में जिन दस प्राचीन प्राचार्यो के मतों का निर्देश किया है, उनमें से केवल प्रापिशलि आचार्य ही ऐसा है, जिसका धातुपाठ-प्रवक्तृत्व प्राचीन ग्रन्थों में साक्षात् निर्दिष्ट है ।
इस प्रकार पाणिनि से पूर्ववर्ती विज्ञात २६ वैयाकरणों में से केवल ६ प्राचार्य ही ऐसे हैं, जिनका धातुपाठ-प्रवक्तृत्व सुविदित है । यद्यपि इन्द्र और वायु के धातुपाठ के उद्धरण प्राचीन ग्रन्थों में नहीं मिलते, पुनरपि इनके शब्दों में प्रकृति-प्रत्यय अंश के प्रथम प्रकल्पक होने से इनका घातपाठ का प्रवक्तृत्व स्वतःसिद्ध है । क्योंकि विना धातुसंग्रह
के प्रकृति-प्रत्यय अंश की कल्पना हो ही नहीं सकती। प्राचार्य भागुरि २५ के उपलब्ध सूत्रों में कतिपय धातुओं, और गुपू में विशिष्ट अनुवन्ध का
निर्देश होने से भागुरि ने धातुपाठ का प्रवचन किया था, ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है । सम्पूर्ण नामशब्दों को धातुज माननेवाले शाकटायन के धातपाठ-प्रवक्तृत्व में भी सन्देह को कोई स्थान नहीं
है। प्रापिशल धातुपाठ के उद्धरण कई ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। अतः ३० उसका घातपाठ किसी समय लोक में प्रचलित था, यह स्पष्ट है।