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________________ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्यात ४–इस टीका में अनेक धातुओं के अर्थों की ऐसी व्याख्या की है, जो अन्य धातुवृत्तियों में उपलब्ध नहीं होती। 'काशकृत्स्न धातुपाठ' और उसको कन्नड टीका का संस्कृत रूपान्तर 'काशकृत्स्न-धातुव्याख्यानम्' के नाम से हम प्रकाशित कर चके हैं। हमने इस ग्रन्थ के तृतीय अध्याय में पाणिनीय तन्त्र में अनुल्लिखित पाणिनि से पूर्ववर्ती जिन तेईस वैयाकरणों का वर्णन किया है, उनमें से उपरिनिर्दिष्ट केवल चार आचार्यों का ही धातुपाठ-प्रवऋतृत्व सुज्ञात है। ___५. शाकटायन (३००० वि पूर्व) वैदिक वाङमय तथा वैयाकरण निकाय में प्रसिद्ध है कि प्राचार्य शाकटायन सम्पूर्ण नामशब्दों को धातुज मानता था। यास्क निरुक्त १।१२ में लिखता हैं'तत्र नामान्याख्यातजानीति शाकटायनो नरुक्तसमयश्च' । अर्थात्-सब नाम प्राख्यातज ( धातु से उत्पन्न) हैं, ऐसा शाक- १५ टायन मानता है। और यही नैरुक्त आचार्यों का सिद्धान्त है। महाभाष्य ३।३।१ में भी लिखा है.. 'व्याकरणे शकटस्य च तोकम्-वैयाकरणानां च शाकटायन पाह--धातुजं नामेति ।' अर्थात्-वैयाकरण में शकट-पुत्र शाकटायन कहता है कि 'नाम २० धातु से निष्पन्न हैं। इतना ही नहीं, यास्क शाकटायन के शब्द निर्वचन-प्रकार पर किये गये आक्षेप का भी उत्तर देते हुए लिखता है संषा पुरुषगर्दा, न शास्त्रगर्दा । १।१४॥ अर्थात्-यह पुरुष की निन्दा है [जो शाकटायन के निर्वचन- २५ प्रकार को नहीं समझता । शाकटायन-प्रोक्त] शास्त्र की गर्दा नहीं हैं, अर्थात् शाकटायन का शास्त्र अथवा निर्ववचन-प्रकार युक्त है। इसी के उपोद्वलक काशिका ११४८६.८७ में दो उदाहरण हैंअनुशाकढायनं वैयाकरणाः । उपशाकटायनं वैयाकरणाः । अर्थात् - सब वैयाकरण शाकटायन के नीचे हैं।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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