SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ३७ इति श्री यागाण्टिशरभलिङ्गप्रसादिनस्तित्तिरयजुःशाखाध्ययनस्य वामदेवमुखोद्भुतस्य गजकर्णपुत्रस्य अत्रिगोत्रस्य वीरमाहेश्वरतन्त्रसूत्रस्य शिवलंकमंचनपण्डिताराध्यप्रवरस्य कोकिलाकुण्डस्य संगनगुरुलिंगनंद्यम्बाकुमारस्य पितृव्यनम्ब्यणगुरुकरजातस्य सह्याद्रीकटकषड्देशस्य कुण्टिकापुरस्य काशीकाण्डचन्नवीरकविकृतौ काशकृत्स्नधातु- ५ कर्नाटटीकायाम आत्नेपदिन: लेखकपाठकश्रोतणां संस्कृतार्थप्रकाशिका भूयात् । हमारी नागराक्षर प्रति में अनलिखित उक्त पाठ कई स्थानों पर अशुद्ध है । पुनरपि इससे इतना व्यक्त हो जाता है कि चन्नीवीर कवि का पूरा नाम काशीकाण्ड चन्नवीर कवि था । यह अत्रिगोत्रोत्पन्न १० तैत्तिरीय शाखा का अध्येता, और सह्याद्री मण्डलवर्ती कुण्टिकापुर का निवासी था । काल-ग्रन्थ के सम्पादक ने श्री प्रार. नरसिंहाचार्य के मतानुसार चन्नवीर कवि का काल १५०० लिखा है। अन्य ग्रन्थ - चन्नवीर कवि ने सारस्वत व्याकरण, पुरुषसूक्त, और १५ नमक-चमक (=यजुर्वेद के 'नम:' 'च मे' पदवाले अध्याय) की कन्नडटीकाएं लिखी हैं, ऐसा सम्पादक ने उपोद्धात में लिखा है। व्याख्या का वैशिष्ट्य यद्यपि यह व्याख्या अत्यन्त स्वल्पाक्षरा है, तथापि किसी प्राचीन व्याख्या पर आघृत होने से इसमें अनेक विशेषताएं उपलब्ध होती २० हैं। यथा १-इस टीका में काशकृत्स्न व्याकरण के १३७ सूत्र उद्धृत हैं। २-इस व्याख्या में अनेक ऐसे कृदन्त शब्दों का निर्देश किया है, जिन्हें पाणिनीय वैयाकरण तद्धितान्त मानते हैं। यथा-चौर्यम् २५ हमने उन्नोसवें अध्याय में विस्तार से लिखा है कि अति पुराकाल में सम्पूर्ण नाम-शब्द धातुज ही माने जाते थे। उत्तरोत्तर मतिमान्द्य से धात्वर्थ-अनुगमन न होने पर उन शब्दों में सम्बन्धान्तर की कल्पना करके उन्हें तद्धितान्त बना दिया गया। यथा होमी शब्द होमिन् औणादिक है । इसमें हु धातु से विहित 'क' प्रत्यय को 'मिन्' आदेश ३०
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy