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________________ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (१) ३५ से स्पष्ट है कि कातन्त्र धातपाठ काशकृत्स्न धातपाठ का ही संक्षेप है।' जहां चन्द्रगोमी काशकृत्स्न-क्रम को छोड़कर पाणिनीय क्रम का अनुसरण करता है, वहां 'कातन्त्र धातुपाठ' काशकृत्स्न क्रम का ही अनुगमन करता है । यथा काशकृत्स्न कातन्त्र पाणिनीय चान्द्र ५ क-दैङ् त्रैङ् पालने दैङ् त्रैड पालने दे रक्षणे देङ् रक्षणे प्यैङ वृद्धौ प्यैङ् वृद्धौ श्यैङ् गतौ श्यैङ गतौ पुङ (?) पवने' पूङ पवने प्यैङ् वृद्धौ प्यैङ् वृद्धौ त्रैङ् पालने त्रैङ् पालने पूङ पवने पूङ् पवने १० ख-लास्नावन- ग्लास्नावन- ग्लास्नावनुवमां ग्लास्नावनुव वमश्वनकम्य- वमश्वनकम्य- च । न कम्य- मां च । न कम्य मिचमः । मिचमः । मिचमाम् । मिचमाम् ।। विशेष—यह भी ध्यान रहे काशकृत्स्न के धातुसूत्र के अनुसार श्वन कम अम चम धातों की णिच प्रत्यय के परे रहने पर विकल्प " से मित् संज्ञा होती है। तदनुसार श्वनयति श्वानयति; कमयति कामयति; अमर्यात प्रामयति; चमयति चामयति दो-दो प्रकार के प्रयोग निष्पन्न होते हैं। पाणिनीय धातसूत्रानुसार कम अम चम की मित्संज्ञा का प्रतिषेध होने से कामयति प्रामयति चामयति रूप ही सिद्ध होते हैं। श्वन धात का तो पाणिनीय में पाठ ही नहीं है। अतः पाणिनीय है। वैयाकरण श्वन् प्रातिपदिक से 'तत् करोति तदाचष्टे' नियम से णिच् 'कातन्त्र धातुपाठ' के एक हस्तलेख के अचानक उपलब्ध हो जाने से हमारी पूर्व मान्यता नष्ट हो गई । अब हमें इसके कई हस्तलेखों का परिज्ञान हो गया है। दो कोशों की प्रतिलिपियां हमारे पास भी हैं। १. काशकृत्स्न के उपलब्ध सूत्रों की कातन्त्र सूत्रों से तुलता करने से भी आप यही मत पुष्ट होता है कि कातन्त्र काशकृत्स्न का संक्षेप है। २. धातुसूत्र ११५५५॥ ३. हमारा हस्तलेख, पृष्ठ ८ । ४. क्षीरतरङ्गिणी ११६८६-६६१ ॥ ५. घातुसूत्र १।४८१-४८५॥ ६. धातुसूत्र १६२४॥ ७. हमारा हस्तलेख, पृष्ठ १० । ८. क्षीरतरङ्गिणी ११५५६,५५७ ॥ ६. धातुसूत्र ११५५१, ५५२॥ ३०
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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