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________________ ३० . संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ५ कलाप, शब्दों का कलाप 'शब्दकलाप') इस व्युत्पत्ति से शब्दकलाप 'काशकृत्स्न व्याकरण' का भी नामान्तर हो सकता है। द्वितीय व्युत्पत्ति के अनुसार 'काशकृत्स्न व्याकरण' किसी प्राचीन महाव्याकरण का संक्षेप प्रतीत होता है।' 'काशकृत्स्न' का सक्षेप कातन्त्र' व्याकरण है। अतः कलाप शब्द से ह्रस्व अर्थ में 'क' प्रत्यय होकर 'कातन्त्र' वाचक कलापक शब्द प्रसिद्ध होता है। हमारे विचार में दूसरी कल्पना अधिक युक्त हैं। ___ काशकृत्स्न धातुपाठ का वैशिष्टय उपलब्ध 'काशकृत्स्न धातुपाठ' में पाणिनीय धातुपाठ की अपेक्षा १० बहुत सी विशिष्टताए उपलब्ध होती हैं । उनमें कतिपय इस प्रकार है १-इस धातुपाठ में ६ नव ही गुण हैं । जुहोत्यादि अदादि के अन्तर्गत है । वैयाकरण-निकाय में प्रसिद्ध नवगणी धातुपाठः अनुश्रति सम्भवतः एतन्मूलक है। २-इस धातुपाठ के प्रत्येक गण में पहले सभी परस्मैपदी धातुएं पढ़ी है, उसके पश्चात् आत्मनेपदी, और अन्त में उभयपदी । पाणिनीय धातुपाठ में तीनों प्रकार की धातुओं का प्रतिवर्ग सांकर्य है। ३–इस धातुपाठ के भ्वादिगण में पाणिनीय धातुपाठ से ४५० धातुए संख्या में अधिक हैं (उत्तर गणों में प्रायः समानता है)। जो धातुए इसी धातुपाठ में उपलब्ध होती हैं, पाणिनीय में पठित नहीं हैं, ऐसी धातुओं की संख्या लगभग ८०० है । पाणिनीय धातुपाठ की भी बहुत सी धातुएं 'काशकृत्स्न धातुपाठ में नहीं हैं। अतः संख्या की दृष्टि से साकल्येन ४५० धातुएं पाणिनीय धातुपाठ की अपेक्षा अधिक हैं। ४-पाणिनीय धातुपाठ में एकविध पढ़ी गई बहुत सी धातुएं 'काशकृत्स्न धातुपाठ' में दो रूप से पठित हैं । यथा क-पाणिनीय धातुपाठ में पठित ईड स्तुती धातु काशकृत्स्न १. तुलना करो- 'काशकृत्स्नं गुरुलाघवम्' ४।३।११५; सरस्वतीकण्ठाभरण ४।३।२४५ में निर्दिष्ट उदाहरण।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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