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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (१)
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प्रत्यय-रूप विभाग-कल्पना सर्वप्रथम इन्द्र ने की थी । अतः इन्द्र और उससे उत्तरवर्ती सभी वैयाकरणों ने धातुपाठ का भी प्रवचन किया था, यह सामान्यरूप से कहा जा सकता है। हम यहां उन धातुपाठप्रवक्ताओं का वर्णन करेंगे, जिनका धातुपाठ-प्रवक्तृत्व सर्वथा स्पष्टतया ज्ञात है।
१. इन्द्र (९५०० वि० पूर्व) शब्दों में प्रकृति-प्रत्यय अंश के प्रथम प्रकल्पक इन्द्र ने प्रकृतिभूत धात्वंश की कल्पना की थी। पाणिनीय प्रत्याहारसूत्रों' पर नन्दिकेश्वर विरचित काशिका (श्लोक २) की उपमन्युकृत तत्त्वविमशिनी टीका में लिखा है
तथा चोक्तमिन्द्रेण
अन्त्यवर्णसमुद्भता धातवः परिकीर्तिताः । इस श्लोक में इन्द्र-प्रकल्पित धातुओं का स्पष्ट निर्देश होने से इन्द्र को धातुपाठ का प्रथम प्रवक्ता कह सकते हैं । इन्द्र-प्रकल्पित धातुओं का क्या स्वरूप था, यह इस समय अज्ञात है। - इन्द्र के काल आदि के विषय में हम इस ग्रन्थ के तृतीय अध्याय में विस्तार से लिख चुके हैं। अतः उसका यहां पुनः निर्देश करना पिष्टपेषण होगा।
२. वायु (९५०० वि० पूर्व) तैत्तिरीय सं० ६।४।७ में लिखा है कि वाणी को व्याकृत करने २० में इन्द्र का शब्दशास्त्र-विशारद 'वायु' सहायक था। 'इन्द्र' का धातुप्रतक्तृत्व पूर्व दर्शा चुके हैं, अतः उसके सहयोगी वायु का धातु-प्रवक्तृत्व भी सुतरां सिद्ध है। __वायु के काल आदि के विषय में भी पूर्व तृतीय अध्याय में लिख चुके हैं।
३. भागुरि (४००० वि० पूर्व) भागुरि आचार्य के श्लोक-बद्ध व्याकरण के छ: श्लोक पूर्व पृष्ठ १. प्रत्याहार सूत्र पाणिनि-प्रोक्त हैं, इसकी मीमांसा के लिये इसी ग्रन्थ . का प्रथम भाग पृष्ठ २२६-२३२ (च० सं०) देखें ।
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