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________________ बीसवां अध्याय धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (१) पाणिनि से पूर्ववर्ती आचार्य पूर्व अध्याय में हम विस्तार से लिख चुके हैं कि पुरा काल में ५ संपूर्ण शब्द धातुज माने जाते थे। जिस काल में शब्दों का एक बड़ा भाग रूढ मान लिया गया, उस समय भी नैरुक्त और वैयाकरणों में शाकटायन संपूर्ण नाम शब्दों को आख्यातज हो मानते थे। इसलिए तात्कालिक वैयाकरणों ने रूढ माने जानेवाले वृक्ष आदि शब्दों के यौगिक-पक्ष को दर्शाने के लिए उणादि-पाठ का खिलरूप से प्रवचन किया । अतः नाम चाहे यौगिक हों, योगरूढ हों अथवा रूढ, उनके प्रकृति अंश की कल्पना के लिए किन्हीं वर्ण-समूहों को प्रकृतिरूप से पृथक् संगृहीत करना ही पड़ेगा। विना उनके संग्रह के अथवा स्वरूप-निर्देश के प्रत्ययांश का निर्देश अथवा विभाजन सर्वथा असम्भव है । अत एव वैयाकरणों ने अपने-अपने शब्दानुशासनों से १५ संबद्ध धातुओं का खिलपाठ में संग्रह किया। यही संग्रह वैयाकरणनिकाय में 'धातुपाठ' के नाम से व्यवहृत होता है । धातुपाठ के प्रवक्ता जिस-जिस प्राचार्य ने शब्दानुशासन का प्रवचन किया, उस-उसने स्व-स्वशास्त्र-संबद्ध प्रकृति-प्रत्यय-अंश के विभाग को दर्शाने के लिए २० 'धातुपाठ' का भी प्रवचन किया, यह निस्सन्दिग्ध है। क्योंकि विना धातुनिर्देश के प्रकृति-प्रत्यय-कल्पना का सम्भव ही नहीं। __हमने इस ग्रन्थ के प्रथम भाग (प्र० ३,४) में पाणिनि से पूर्ववर्ती २६ शब्दानुशासनप्रवक्ताओं का निर्देश किया है। उनमें से किस-किस ने धातुपाठ का प्रवचन किया था, यह सम्प्रति अज्ञात है। तैत्तिरीय २५ सं०६।४।७ के प्रमाण से पूर्व लिख चुके हैं कि शब्दों में प्रकृति १. तत्र नामान्याख्यातजानीति शायडायनो नरुत्तसमयश्च । निरु० ॥१२॥ २. प्रथम भाग, पृष्ठ ६६।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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