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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
आचार्य हेमचन्द्र के देशकाल आदि के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ ६९५–६६६ ( च० सं०) तक विस्तार से लिख चुके । पाठक इस विषय में वहीं देखें ।
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१० - नारायण [ ब्रह्मदत्त सूनु ] ( १५वीं शती से पूर्व )
ब्रह्मदत्त के पुत्र नारायण कवि ने सुभद्राहरण नामक एक काव्यशास्त्र लिखा है । इस काव्य के दो हस्तलेख मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह में विद्यमान हैं । द्र०- - सूचीपत्र भाग ३ खण्ड १C, पृष्ठ ३८८३, संख्या २७२०, तथा भाग ५, खण्ड १B, पृष्ठ ६३५८, संख्या ४३२३ ।
द्वितीय हस्तलेख के प्रथम सर्ग के अन्त में निम्न पाठ है'ब्रह्मदत्त (सून) नारायणविरचितं व्याकरणोदाहरणे सविवरणे सुभद्राहरणे प्रकीर्णकाण्डं प्रथमः सर्गः
।'
काव्य का परिचय - इस काव्य में १६ सर्ग हैं । अष्टाध्यायी के क्रम से सूत्रों के उदाहरणों को ध्यान में रखकर कवि ने इस काव्य की १५ रचना की है । कुछ प्रकरणों के नाम इस प्रकार हैं—
·)
६ - अव्यय कविलसित ( ग्रष्टा० ३/४ पूर्वार्ध) ७ - प्राग्दीव्यतीय विलसित ( प्रष्टा० ४।१ - ३ ) ८ - प्राग्वहतीयादि विलसित ( भ्रष्टा० ४१४ । १ - ५ १३ ६ - स्वार्थिकप्रत्ययादि विलसित (प्रष्टा० ५। ३–४) । काल - इस काव्य में भट्टभूम के सदृश पाणिनीय सूत्रक्रम का आश्रयण करने से स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ की रचना पाणिनीय सम्प्रदाय में प्रक्रियाग्रन्थों के पठन-पाठन में व्यवहृत होने से पूर्व हुई है । इसलिये यह ग्रन्थ १५ वीं शती से पूर्व का होगा ।
विवरणकार
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इस काव्य पर ग्रन्थकार ने स्वयं विवरण लिखा है, यह पूर्वनिर्दिष्ट वचन से स्पष्ट है |
इस काव्य और इसके रचयिता के विषय में इससे अधिक हम कुछ नहीं जानते ।