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४६० . संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास विद्यासागरटीकायां कातन्त्रप्रक्रिया यतः । सुपद्मप्रक्रिया तस्मात् तस्मादेव प्रणीयते ॥'
(८) पुण्डरीकाक्ष--विद्यासागर पुण्डरीकाक्ष-विद्यासागर नामक वैयाकरण ने भट्किाव्य पर ५ कातन्त्र=कलाप व्याकरण के अनुसार कलापदीपिका नाम्नी व्याख्या लिखी है । उसने ग्रन्थ के प्रारम्भ में लिखा है -
'नत्वा शंकरं चरणं ज्ञात्वा सकलं कलापतत्वं च । दृष्ट्वा पाणिनितन्त्रं वदति श्रीपुण्डरीकाक्षः ॥ पाणिनीयप्रक्रियायां मे प्रसिद्धत्वान्न कौतुकम् ।
कलापप्रक्रिया तस्मादप्रसिद्धात्र कथ्यते ॥ .. अन्त में इस प्रकार है
'इति महामहोपाध्याय श्रीमच्छीकान्तपण्डितात्मजश्रीपुण्डरीकाक्षविद्यासागर भट्टाचार्यकृतायां भट्टिटीकायां कलापदीपिकायां...।'
इससे इतना ही विदित होता है कि पुण्डरीकाक्ष के पिता का १५ नाम 'श्रीकान्त' था। पूर्वनिर्दिष्ट कन्दर्पशर्मा द्वारा स्मत विद्यासागर यही पुण्डरीकाक्ष-विद्यासागर है, इसमें कोई सन्देह नहीं।
(E) हरिहर हरिहर प्राचार्य ने भट्टिकाव्य पर भट्टिबोधिनी नाम्नी व्याख्या लिखी है। उसके प्रारम्भ में वह स्वयं लिखता है
'नत्वा रामपदद्वन्द्वमरविन्दभवच्छिदम् । द्विजो हरिहराचार्यः कुरुते भट्टिबोधिनीम् ॥' 'पूर्वग्रामिकुले कलानिधिनिभं कृत्वा सुमेरुस्थितो भ्राता तस्य जयधरो द्विजवरो वाणेश्वरस्तत्सुतः ।......"परिवृढयन् भर्तृहरिः काव्यप्रसंगेन...।'
(१०) भरतसेन भरतसेन ने मुग्धबोध प्रक्रिया के अनुसार भट्टिकाव्य पर एक टीका लिखी है।