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________________ ४८६ संस्कत व्याकरण-शास्त्र का शैतहास " भामह का पद्य है काव्यान्यपि यदीमानि व्याख्यागम्यानि शास्त्रवत् । उत्सवस्सुधियामेव हन्त दुर्मेधसो हताः' ॥२॥३०॥ भट्टि का कथन'व्याख्यागम्यमिदं काव्यमुत्सवस्सुधियामलम् । हता दुर्मेधसश्चास्मिन् विद्वप्रियचिकीर्षया' ॥१२॥३४॥ . इस समानता से स्पष्ट है कि कोई एक दूसरे का अनुकरण कर रहा है । कीथ ने 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' ग्रन्थ में भट्टि को भामह से पूर्ववर्ती माना है । और भटि के व्याख्यागम्यमिदं काव्यं १० श्लोक की भामह द्वारा की गई प्रतिध्वनि को भद्दे ढंग से दोहराना कहा है। इसी प्रकार भट्टि द्वारा प्रस्तुत अलङ्कारों की सूची को दण्डी और भामह की अलङ्कार सूचियों से मौलिकतापूर्ण कहा है।' इसके विपरीत 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' के लेखक कन्हैया लाल पोददार का मत है कि भामह भटि का पूर्ववर्ती है । भामह ने । उक्त श्लोक में यमक और प्रहेलिका अलङ्कारों का निर्देश करने के अनन्तर उक्त प्रकार के क्लिष्ट काव्यों की निन्दा की है । परन्तु भट्टि ने अपने ग्रन्थ के अन्त में भामह द्वारा निन्दित क्लिष्टकाव्य की प्रशंसा में उक्त वचन कहा है । इतना ही नहीं, भट्टि ने भामह के उत्सवस्सुधियामेव के स्थान पर उत्सवस्सुधियामलम् में एव के स्थान में अलम् का निर्देश करते हुए क्लिष्टकाव्य-रचना का प्रयोजन विद्वप्रियचिकीर्षया बताया है। इतना ही नहीं, इससे पूर्ववर्ती 'दीपतल्यः प्रबन्धोऽयं शब्दलक्षणचक्षषाम् । - हस्तामर्ष इवान्धानां भवेद् व्याकरणादृते ॥' लोक में भी वैयाकरणों के लिए ही काव्य रचना करने का २५ संकेत किया है। इस विवेचना से स्पष्ट है कि भट्टि भामह से पूर्ववर्ती है। भामह का काल वि० सं०६८७ से पर्याप्त पहले है । सं०६८७ वि० के १. द्रष्टव्य, हिन्दी अनुबाद, पृष्ठ १४१, १४२ । २. कन्हैयालाल पोद्दार सं० सा० का इतिहास, भाग १, पृष्ठ १०१-१०४।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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