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लक्ष्य-प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि
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समीपवर्ती स्कन्दमहेश्वर ने निरुक्त टीका १०।१६ में भामह का 'तुल्य श्रुतीनां तन्निरुच्यते' (२।१७) का वचन उद्धृत किया है । न्यास के सम्पादक ने भामह के अलङ्कारशास्त्र के शिष्टप्रयोगमात्रेण न्यासकारमतेन वा वचन में न्यासकार नाम देखकर भामह का काल सन् ७७५ ई० (सं० ८३२ वि०) माना है। सम्भवतः कीथ ने भी भामह ५ द्वारा न्यासकार का उल्लेख होने से भट्टि को भामह से पूर्ववर्ती सिद्ध करने की चेष्टा की है । वस्तुतः यह मत चिन्त्य है। काशिका व्याख्या न्यास से पूर्व भी व्याकरण इतिहास में अनेक न्यास प्रसिद्ध थे।
भट्टि काव्य का नाम-भट्टिकाव्य का वास्तविक नाम रावणवध काव्य है।
टीकाकार भट्टिकाव्य पर अनेक व्याख्याकारों ने टीका ग्रन्थ लिखे हैं । इस में निम्न प्रसिद्ध हैं
(१) जटीश्वर-जयदेव-जयमङ्गल (सं० १२२६ वि० से पूर्व) 'जटीश्वर-जयदेव-जयमङ्गलः इन तीन नामों वाले वैयाकरण ने १५ भट्टिकाव्य पर जयमङ्गला नाम्नी एक सुन्दर व्याख्या लिखी है। यह व्याख्या पाणिनीय व्याकरण के अनुसार है। . . ___ काल-जयमङ्गल का काल अज्ञात है। इस व्याख्या को दूर्घटवृत्तिकार शरणदेव ने अनेक स्थानों पर उद्धृत किया है इसलिये इस व्याख्याकार का काल १२२६ वि० से पूर्व है, इतना ही सामान्यरूप २० से कहा जा सकता है।
(२) मल्लिनाथ (सं० १२६४ वि० से पूर्व) काव्यग्रन्थों के टीकाकार के रूप में मल्लिनाथ अत्यन्त प्रसिद्ध है। इसने भट्टिकाध्य पर भी व्याख्या लिखी हैं। .
१. विशेष द्रष्टव्य सं० व्या० शा० का इतिहास भाग १, पृष्ठ ५६ (च० २५ सं०) 'महाकवि माघ और न्यास' अनुशीर्षक के नीचे का सन्दर्भ।