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लक्ष्य प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि . ४७७
'वरतनु सम्प्रवदन्ति कुक्कुटाः।' यह भी किसी काव्यशास्त्र के श्लोक का एक चरण हैं।
३. महाभाष्य २११५६ में सूत्र प्रयोजन विषयक आशङ्का उपस्थित करके उत्तर के रूप में 'स्तोष्याम्यहं पादिकमौववाहिम्' श्लोक उद्धृत किया है । इसे हम इसी अध्याय में पूर्व (पृष्ठ ४६३) लिख ५ चुके हैं। ४. महाभाष्म २४१३ में
नन्दन्तु कठकालापाः। वर्घन्तां कठकौथुमाः। तिष्ठन्तु कठकालापाः। उदगात कठकालापम्।
प्रत्यष्ठात कठकोथुमम् । ये पांचों वचन पादवद्ध हैं, और किसी एक ही ऐसे काव्यशास्त्ररूपी ग्रन्थ से संगहीत किये गये हैं, जिसमें इस सूत्र के उदाहरण प्रत्युदाहरण निर्दिष्ट थे। भौमक के रावणार्जनीय काव्य में इसी सत्र के १५ प्रकरण में अन्तिम दोनों वचन इसी वर्णानुपूर्वी में संगृहीत हैं । द्र०सर्ग ७, श्लोक ४।
रावणार्जुनीय के सम्पादकद्वय शिवदत्त-काशानाथ ने महाभाष्य में निर्दिष्ट उदगात् कठकालापम, प्रत्यष्ठात् कठकौथुमम् को इनके साथ पठित उदगात् कौमोदपप्पलादम् उदाहरण की दृष्टि से पदगन्धि २० गद्य माना है। पूर्वनिर्दिष्ट सभी उद्धरणों को देखने से यही निश्चित होता है कि ये निश्चय ही किसी लक्ष्यप्रधान काव्य के वचन हैं।
६-मट्ट भूम (सं ६०० के लगभग) . " भट्टभूम अथवा भूमक अथवा भीम विरचित रावणार्जुनीय अथवा अर्जुनरावणीय' नामक एक लक्ष्य-लक्षण-प्रधान काव्य उपलब्ध है। २५
परिचय-भट्टभूम ने अपना कोई परिचय अपने ग्रन्थ में नहीं
१. मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र भाग ४ खण्ड १ Aपृष्ठ ४२८१, संख्या २६५४ इस काव्य का एक हस्तलेख 'अर्जुनरावणीय नाम से निर्दिष्ट है।