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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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१५. प्रसन्नसाहित्यरत्नाकर-नन्दन (अमुद्रित) १६. भामहकाव्यालङ्कार-उद्भट विवरण (?) १७. भाषावृत्ति-पुरुषोत्तमदेव १८. रुद्रट-काव्यालङ्कार-टीका-नमिसाधु १९. वाग्भटालङ्कार-वाग्भट २०. शार्ङ्गधरपद्धति-शार्ङ्गधर २१. सदुक्तिकर्णामृत-श्रीधरदास २२. सरस्वतीकण्ठाभरण-कृष्ण लीलाशुक मुनि २३. सुभाषितरत्नकोश-विद्याकर २४. सुभाषितावली-वल्लभदेव २५. सभ्यालङ्करण-गोविन्दजित् २६. सूक्तिमुक्तावली-जल्हण २७. सूक्तिमुक्तावली-सारसंग्रह
२८. हैम-काव्यानुशासन वृत्ति -हेमचन्द्र १५ २६. पुरुषोत्तमदेव विरचित भाषावृत्ति (१।१।१५) की टिप्पणी
पाणिनीय जाम्बवतीविजय काव्य के उपर्युक्त ग्रन्थों में से लगभग २०-२२ उद्धरणों का संग्रह पी० पीटर्सन ने JRAS सन् १८६१ पृष्ठ ३१३-३१६ में प्रकाशित किया था। तदनन्तर पं० चन्द्रधर गुलेरी ने दुर्घटवृत्ति भाषावृत्ति गणरत्नमहोदधि सुभाषितावली में उपलब्ध नये छ: उद्धरणों के साथ २८ उद्धरण 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका काशी' नया संस्करण भाग १, खण्ड १ में भाषानुवाद सहित प्रकाशित किये थे। एक उद्धरण अभी छपते छपते' उपलब्ध हुअा है।
सरस्वतीकण्ठाभरण की कृष्ण लीलाशुक मुनि विरचित टीका में पाणिनीय काव्य के उद्धरणों की सूचना कृष्णमाचार्य ने अपने २५ 'हिस्ट्री आफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर' ग्रन्थ के पृष्ठ ८५ पर दी
है। नन्दनकृत प्रसन्न-साहित्यरत्नाकर (अमुद्रित) में पाणिनि के नाम से स्मृत दो श्लोक हारवर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित (सन् १९५७)
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१. इसका एक नया सुन्दर संस्करण भी कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुआ है। २. इसकी सूचना विजयपाल नामक शोधकर्ता ने १५-६-८४ के पत्र द्वारा