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२/६० लक्ष्य-प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि ४७३ 'सुभाषितरत्नकोश' के परिशिष्ट पृष्ठ ३३१ पर उद्धृत् है । भामह के काव्यालङ्कार के जो उद्भट कृत विवरण का अतिजीर्ण हस्तलेख काफिरकोट के पास से उपलब्ध हुअा है, उस में पाणिनीय काव्य का एक त्रुटित श्लोकांश उद्धत है' (द्र०-छपी पुस्तक पृष्ठ ३४ का अन्त, ३५ का प्रारम्भ)।
इस प्रकार अभी तक २६ ग्रन्थों में पाणिनीय जाम्बवती विजय काव्य के उद्धरण उपलब्ध चुके हैं। प्रयत्न करने पर इसके और भी उद्धरण हस्तलिखित ग्रन्थों में ढूढे जा सकते हैं। ...
पाणिनीय जाम्बवतीविजय काव्य के अद्ययावत् समस्त उपलब्ध श्लोक वा श्लोकांशों का संग्रह इस ग्रन्थ के तृतीय भाग के ६ छठे १० परिशिष्ट में हम दे रहे हैं।
२-च्याडि (२९०० वि० पूर्व) महामुनि व्याडि अभी तक केवल वैयाकरण रूप में, और वह भी व्याकरणसम्बन्धी दार्शनिक ग्रंथकार के रूप में प्रसिद्ध थे। परन्तु महाराज समुद्रगुप्त के कृष्णचरित के कुछ अंश के उपलब्ध हो जाने से २५ वैयाकरण व्याडि का महाकाव्यकर्तृत्व भी स्पष्ट परिज्ञात हो गया। कृष्णचरित के मुनि कव वर्णन-प्रसङ्ग में लिखा है
रसाचार्यः कविया डि : शब्दब्रह्म कवाङ मुनिः । दाक्षीपुत्रवचोव्याख्यापटुर्मीमांसकाग्रणीः ॥१६॥ बलचरितं कृत्वा यो जिगाय भारतं व्यासं च। .. २० महाकाव्यविनिर्माणे तन्मार्गस्य प्रदीपमिव ॥१७॥ इन श्लोकों से स्पष्ट है कि महामुनि व्याडि ने भारत (महा- . भारत नहीं) से भी बृहद् आकार का बलचरित ( =बलदेव का चरित) लिखा था।
व्याडि के काव्यनिर्माण की पुष्टि अमरकोष की अज्ञातकर्सक २५ टीका से भी होती है। यह टीका मद्रास के राजकीय हस्तलेख संग्रह में सुरक्षित हैं । इसके १८५वें पत्र में व्याडि का निम्न पद्यांश उद्धृत
१. विशेष विवरण द्र०:- यही. ग्रन्थ भाग प्रथम पृष्ठ २५८, २५६ (च० सं)।