________________
लक्ष्य-प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि ४७१ ८- 'यशस्तिलकचम्पू' में सोमदेव सूरि ने लिखा है'पणिपुत्र इव पदप्रयोगेषु ।' प्रा० २, पृष्ठ २२६॥
यहां सोमदेव सूरि ने पाणिनि के जिन विशिष्ट पद-प्रयोगों की ओर संकेत किया है, वे निश्चित ही जाम्बवतीविजय में प्रयुक्त . विशिष्ट पद हैं। पाणिनीय सूत्रपाठ के नहीं हो सकते।
इन प्रमाणों से सिद्ध है कि 'जाम्बवतीविजय महाकाव्य' और शब्दानुशासन का रचयिता पाणिनि एक ही है।
जाम्बवतीविजय का परिमाण-जाम्बवतीविजय इस समय अनु'पलब्ध है। अत: उसके विषय में विशेष लिखना असम्भव है। दुर्घटवृत्तिकार शरणदेव ने जाम्बवतीविजय के १८ वें सर्ग का एक उद्धरण दिया है।' उससे विदित होता है कि जाम्बवतीविजय में न्यून से न्यून १८ सर्ग अवश्य थे।
जाम्बवतीविजय के उद्धरण-इस महाकाव्य के उद्धरण निम्न 'ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं
१. अलङ्कारकौस्तुभ-कविकर्णपूर २. अलङ्कार तिलक- .. ३. अलङ्कारशेखर-जीवनाथ ४. अलङ्कारसर्वस्व- रुय्यक ५. कवीन्द्रवचन समुच्चय६. कातन्त्र धातुवृत्ति-रामनाथ ७. कुवलयानन्द-अप्पय्य दीक्षित . ८. गणरत्न महोदधि- वर्धमान ६. दशरूपक-धनञ्जय . १०. दुर्घटबत्ति-शरणदेव । ११. ध्वन्यालोक-आनन्दवर्धन ........... १२. पदचन्द्रिका (अमरकोष टीका)-रायमुकुट "१३. पद्यरचना- लक्ष्मणभट्ट प्राडोलर। .. १४. प्रतापरुद्र-यशोभूषण-टीका . . १.१. त्वया सहाजितं यच्च यच्च सस्य पुरातनम् । चिराय चेतसि पुरुतरुणीकृतमद्य मे । इत्यष्टादशे । दुर्घटवृत्ति ४।३।२३, पृष्ठ ८२।
३०