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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ४-महाराज, समुद्रगुप्त विरचित 'कृष्णचरित्र का कुछ अंश उपलब्ध हुआ है। उसके प्रारम्भ में १० मुनि कवियों का वर्णन है। आरम्भ के १२ श्लोक खण्डित हैं । अगले श्लोकों से विदित होता है कि. खण्डित श्लोकों में पाणिनि का वर्णन अवश्य था। वररुचि कात्यायन के प्रसंग में लिखा है- .
. 'न केवलं व्याकरणं पुपोष दाक्षीसुतस्येरितवातिकर्यः । काव्येऽपि भूयोऽनुचकार तं वै कात्यायनोऽसौ कविकर्मदक्षः ॥१०॥
अर्थात्-कात्यायन ने केवल वार्तिकों से पाणिनीय सूत्रों को ही पुष्ट नहीं किया, अपितु उसने काव्य में भी पाणिनि का अनुकरण किया है।
पुनः महाकवि भास के प्रकरण में लिखा है-. 'अयं च नान्वयात् पूर्ण दामोपुत्रपदक्रमम् ॥२६॥
अर्थात् -इस (भास) ने दाक्षीपुत्र के पदक्रम ( = व्याकरण) काः पूर्ण अन्वय (=अनुगमन) नहीं किया। १५ भास के नाटकों में बहुधा, प्रयुक्त अपाणिनीय शब्द इस तथ्य को
साक्षात् उजागर करते हैं।' __५–महामुनि पतञ्जलि ने. १।४।५१ के महाभाष्य में पाणिनि को कवि लिखा है- 'विशासिगुणेन च यत् सचते तदर्कोतितमाचरितं कविना।''.. २०. ६-विक्रम की १२ वीं शताब्दी में होने वाला पुरुषोत्तमदेव
अपनी 'भाषावृत्ति में पाणिनीय सूत्र २१४।७४ की व्याख्या की पुष्टि में जाम्बवतीविजय काव्य को पाणिनीय मानकर उद्धृतःकरता है।
७-पुरुषोत्तमदेव से कुछ परभावो'शरणदेव ने भी अपनी 'दुर्घटवृत्ति' में बहुत्र पाणिनि के जाम्बवतीविजय को सूत्रकार पाणिनि का. २५ काव्य मानकर प्रमाणरूप से उद्धृत किया है । यथा ४३।२३, पृष्ठ ८२ (प्रथम संस्करण)
. . १. द्र०-प्रथम भाग पृष्ठ ४२, ४४ (च० सं०) २. इति पाणिनेर्जाम्बवतीविजयकाव्यम् ।