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________________ लक्ष्य-प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि ४६९ प्रयोग के आधार पर ही जाम्बवतीविजय को अपाणिनीय कहा जाए, तो क्या उसके अपने व्याकरणशास्त्र में साक्षात् सूत्रों से प्रसिद्ध लगभग १०० प्रयोगों की उपलब्धि होने से अष्टाध्यायों को भी अपाणिनीय नहीं कहा जा सकता? अब हम उन ग्रन्थकारों के वचन उद्धृत करते हैं, जिन्होने वैया- ५ करण पाणिनि को ही जाम्बवतीविजय का रचयिता माना है १-राजशेखर (सं० १५० वि०) ने पाणिनि की प्रशंसा में निम्नलिखित पद्य पढ़ा है _ 'नमः पाणिनये तस्मै यस्मादाविरभूविह। प्रादौ व्याकरणं काव्यमनुजाम्बवतीविजयम् ॥ १० २-श्रीधरदासकृत 'सदुक्तिकर्णामृत' (सं० १२०० वि०) में . सुबन्धु, रघुकार (द्वितीय कालिदास), हरिचन्द्र, भारवि तथा भवभूति आदि कवियों के साथ दाक्षीपुत्र का भी नाम लिखा है। दाक्षीपुत्र वैयाकरण पाणिनि का ही पर्याय है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं । यथा 'सुबन्धौ भक्तिनः क इह रघुकारे न रमते, .. . १५ तिर्दालीपुत्र हरति हरिचन्द्रोऽपि हृदयम् । विशुद्धोक्तिः शूरः प्रकृतिमधुरा भारविगिर स्तथाप्यन्तर्मोदं कमपि भवभूतिवितनुते॥' ३- क्षेमेन्द्र (वि० १२ वीं शताब्दी) ने 'सुवृत्ततिलक' छन्दोग्रन्थ में पाणिनि के उपजाति छन्द की अत्यन्त प्रशंसा की है। वह २० लिखता है 'स्पृहणीयत्वचरितं पाणिनेरुपजातिभिः। चमत्कारकसाराभिरुद्यानस्येव जातिभिः॥' १. एकाक्षराधिकेयमनुष्टुप । लौकिक छन्दों में भी भुरिक् नित् भेद होते हैं। इसके लिए देखिये-हमारे 'वैदिकछन्दोमीमांसा' ग्रन्थ के पृष्ठ २१३- २५ २१६ । २. समुद्रगुप्त विरचित कृष्णचरित में भी राजकवि वर्णन में 'हरिचन्द्र' नाम का ही निर्देश मिलता है। कृष्णचरित का उपलब्ध स्वल्पतम भाग हमने तीसरे भाग में ७ वें परिशिष्ट में छापा है। वहां देखें।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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