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लक्ष्य प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण: कवि.
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इसलिये पाणिनीय काव्य में अनेक प्रकार की छन्दोरचना का:उपलब्ध. होना सर्वथा स्वाभाविक हैं। ....
पाणिनि के काल में चित्रकाव्यों की सत्ता-इतने पर भी जों लोग दुराग्रहवश पाणिनि के काल में विविध लौकिक छन्दों के भेद-- प्रभेदों की सत्ता स्वीकार करने को तैयार नहीं होते, उनके परितो- ५ षार्थ दुर्जन सन्तोष न्याय से पाणिनि के व्याकरण (जिसे पाश्चात्त्य भी पाणिनीय ही मानते हैं) से ही कतिपयः ऐसे प्रमाण उपस्थित करते हैं, जिनसे सूर्य के प्रकाश को भांति स्पष्ट हो जाएगा कि पाणिनि से पूर्व न केवल लोकिक छब्द ही पूर्ण विकास को प्राप्त हो चुके थे, अपितु उससे पूर्व विविध प्रकार के चित्रकाव्यों की रचना भी सहृदयों के १० मनों को प्राह्लादित करती थी। इस विषय में पाणिनि के निम्न. सूत्र द्रष्टव्य हैंक-अष्टाध्यायी का एक सूत्र हैं:
... संज्ञायाम् । ३।४।४।। . अर्थात्-अधिकरणवाची. उपपद होने: पर: 'कध' धातु से संज्ञाः, १५' विषय.में णमुल्' प्रत्यय होता है।।. ... ..
इस सूत्र की वृत्ति में काशिकाकार ने क्रौञ्चबन्ध बनाति,, मयू-.. रिकाबन्धं. बध्नाति उदाहरण देकर स्पष्ट लिखा है- .....
___ बन्धविशेषाणां नामधेयान्येतानि । अर्थात्-ये बध (=काव्यबन्ध) विशेषों के नाम हैं। .ख-अष्टाध्यायीं के षष्ठाध्याय में दूसरा सूत्र है- बचःविभाषा: ६॥३॥१३॥
अर्थात् - 'बन्ध' उत्तरपद होने पर हलन्त और अदन्त शब्दों से परे : सप्तमी विभक्ति का विकल्प से लुक होता है। .:.
काशिकाकार ने इस.सूत्र पर निम्न उदाहरण दिये हैं- २५ हस्ते कधः, हस्तबन्धः । चक्रे बन्धः, चक्रबन्धः । . इसी सूत्र की वृत्ति में काशिकाकार ने प्रत्युदाहरण दिया है :'हलदन्तादित्येव-गुप्तिबन्धों ।