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________________ ५ ४६६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास उनकी रचना छन्दोबद्ध और सरस सालकृत नहीं है ? क्या ब्राह्मणग्रन्थों में रामायण महाभारत मनुस्मृति आदि जैसी भाषा, और तादश छन्दों में रची यज्ञगाथायें नहीं पढ़ी हैं ? भारतीय इतिहास के अनुसार कृष्णद्वैपायन व्यास वैदिक शाखाओं का प्रवक्ता, ब्रह्मसूत्रों का रचयिता, और महाभारत जैसे बहनीतिगुम्फित सरस सालङ्कृत ऐतिहासिक महाकाव्य का निर्माता है। इसमें किञ्चिन्मात्र सन्देह का अवसर नहीं है। कहां तक कहें, भारतीय इतिहास के अनुसार रामायण जैसे महाकाव्य का रचनाकाल वर्तमान शाखाओं और ब्राह्मण ग्रन्थों के संकलन से बहुत प्राचीन है। १०. पाश्चात्त्य लेखकों को भय था कि यदि पाणिनि के समय में ऐसे विविधछन्दोयुक्त ललित तथा सरस काव्य की रचना का सद्भाव मान लिया जाएगा, तो उनका कल्पित ऐतिहासिक कालक्रम, तथा उस पर बड़े प्रयत्न से निर्मित उनका ऐतिहासिक प्रासाद तत्क्षण धलि सात् हो जाएगा। इसलिये जैसे कोई मिथ्यावादी अपने एक असत्य १५ को छिपाने के लिये अनेक असत्य वचनों का आश्रय लेता है, उसी प्रकार पाश्चात्त्य विद्वानों ने अपनी काल्पनिक ऐतिहासिक काल परम्परा की रक्षा के लिये अनेक असत्य पक्षों की उद्भावना की। इसलिए पाश्चात्त्य लेखकों के लिखने से, अथवा मुट्ठीभर उनके अनुयायी अङ्गरेजी पढ़े लिखे लोगों के कहने मात्र से भारतीय वाङ्मय में एक २० स्वर से स्वीकृत "जाम्बवती विजय' महाकाव्य का कर्तृत्व महामुनि 'पाणिनि से कथमपि हटाया नहीं जा सकता। अलंकार-डा० प्रह्लाद कुमार ने अपने 'ऋग्वेदे ऽलंकाराः' नामक ग्रन्थ में लिखा है ___ पाणिनीयतन्त्रे उपमालंकारस्य साङ्गोपाङ्ग विवेचनं नयनमोचरी २.५ भवति । पृष्ठ ८४ । अर्थात-पाणिनीय अष्टाध्यायी में उपमालंकार का साङ्गोपाङ्ग वर्णन उपलब्ध होता है। . . -'पाणिनि के काल में विविध लौकिक छन्दों का सद्भाव-महामुनि पिङ्गल पाणिनि का अनुज है, यह भारतीय इतिहास में सर्वलोक प्रसिद्ध बात है। पिङ्गल ने अपने छन्दःशास्त्र में विविध प्रकार के ३० लौकिक छन्दों के अनेक भेद-प्रभेदों का विस्तार से उल्लेख किया है।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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