________________
२/५८
व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार
४५७ .
परिचय-हरिभट्ट ने दर्पण के अन्त में अपना जो परिचय दिया है, उससे इतना ही विदित होता है कि हरिभट्ट के पिता का नाम केशव दीक्षित था इसकी माता का नाम सखी देवी, और ज्येष्ठ भ्राता का नाम धनुराज था।
काल-हरिभट्ट ने दर्पण टोका लिखने का काल स्वयं इस प्रकार ५ लिखा है
'युगभूतदिगात्मसम्मिते वत्सरे गते। मार्गशुक्लपक्षे पौर्णमास्यां विधोदिने ॥
रोहिणीस्थे चन्द्रमसि वृश्चिकस्थे दिवाकरे। ___ समाप्तिमगमद् ग्रन्थस्तेन तुष्यतु नः शिवः ॥ १० अर्थात्-सन् १८५४ व्यतीत होने पर मार्गशुक्ला पौर्णमासी सोमवार रोहिणी नक्षत्र में चन्द्रमा और वृश्चिक राशि में सूर्य होने पर यह ग्रन्थ समाप्त हुआ।
३. मन्नुदेव (सं० १८४०-१८७० वि०) मन्नुदेव ने भूषणसार पर कान्ति नामक व्याख्या लिखी है। १५ परिचय-मन्नुदेव वैद्यनाथ पायगुण्ड का शिष्य है।..
काल-वैद्यनाथ के पुत्र बालशर्मा ने मन्न देव और महादेव की सहायता,और कोलबुक की आज्ञा से 'धर्म-शास्त्र-संग्रह' लिखा था। हेनरी टामस कोलबुक भारत में सन् १७८३-१८१५ अर्थात् वि० सं० १८४०-१८१५ तक रहा था।
२० भैरवमिश्र (सं० १८८१ वि०) भैरवमिश्र ने भूषणसार पर परीक्षा नाम्नी व्याख्या लिखी है।
परिचय-भैरवमिश्र ने लिङ्गानुशासन-विवरण के अन्त में जो अपना परिचय दिया है, उसके अनुसार इसके पिता का नाम भनदेव और गोत्र अगस्त्य था॥
२५ काल-भैरवमिश्र ने लघुशब्देन्दुशेखर की चन्द्रकला टीका के अन्त में ग्रन्थ-समाप्ति का काल इस प्रकार लिखा है
'शश्यष्टसिद्धिचन्द्राख्ये मन्मथे शुभवत्सरे । माघे मास्यसिते पक्षे मूले कामतिथौ शुभा ।।