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रुद्रनाथ .
४५८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पूर्णा वारे दिनमणेरियञ्चन्द्रकलाभिधा।
शब्देन्दुशेखरव्याख्या भैरवेण यथामति ॥ __ अर्थात् -सं० १८८१ वि० मन्मथ नाम के संवत्सर माघ कृष्णपक्ष
मूल नक्षत्र कामतिथि रविवार के दिन चन्द्रकला टीका पूर्ण हुई। ५. इससे स्पष्ट है कि भैरवमिश्र का काल सं० १८५०-१६०० वि० तक मानना उचित होगा।
५. रुद्रनाथ . रुद्रनाथ ने भूषणसार पर विवृत्ति नामक टीका लिखी है। इसके विषय में हम अधिक कुछ नहीं जानते।
६. कृष्णमित्र • कृष्णमित्र ने भूषणसार पर रत्नप्रभा नाम्नी वृत्ति लिखी है। कृष्णमित्र ने शब्दकौस्तुभ पर 'भावप्रदीप' नाम की एक व्याख्या भी लिखी है । इसका उल्लेख हम प्रथम भाग पृष्ठ ५३४ (श० सं०) पर कर चुके हैं। . उपर्युक्त टीकाकारों के अतिरिक्त अन्य कतिपय वैयाकरणों ने भी भूषणसार पर टीका ग्रन्थ लिखे हैं । विस्तारभय से हम यहां उन का निर्देश नहीं करते।
१५-नागेशभट्ट (सं० १७३०-१८१० वि०)
नागेश भट्ट ने वैयाकरणसम्मत वैयाकरणसिद्धान्तमञ्जूषा २० नामक एक दार्शनिक ग्रन्थ लिखा है।
परिचय-नागेशभट के देश काल आदि का परिचय इस ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ ४६७-४६६ (च० सं०) पर लिख चुके हैं । __ मञ्जूषा का निर्माण काल-नागेशभट्ट ने मञ्जूषा की रचना
महाभाष्य प्रदीपोद्योत' और परिभाषेन्दुशेखर से पूर्व की थी। २५ मञ्जूषा के अन्य दो पाठ-नागेश ने मञ्जूषा के बृहत् पाठ के
अनन्तर लघुमञ्जूषा और उसके अनन्तर परमलघुमञ्जूषा की रचना
की।
१. अधिक मञ्जूषायां द्रष्टव्यम् । प्रदीपोद्योत ४।३।१०१॥