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________________ ४५६. संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास कौण्ड भट्ट का परिचय-कौण्डभट्ट ने वैयाकरणभूषण के आदि में अपना जो परिचय दिया है, उसके अनुसार कौण्डभट्ट के पिता का नाम रङ्गोजिभट्ट था । वह भट्टोजि दीक्षित का लघु भ्राता था। कौण्डभट्ट ने शेषकृष्ण तनय शेष रामेश्वर अपर नाम सर्वेश्वर से ५ विद्याध्ययन किया था। भूषणसार ने अन्त में वह स्वयं लिखता है 'अशेषफलदातारमपि सर्वेश्वरं गुरुम् । श्रीमद्भूषणसारेण भूषये शेषभूषणम् ॥ कौण्डभट्ट सारस्वत कुलोत्पन्न काशी निवासी था। काल-गुरुप्रसाद शास्त्री ने स्वसम्पादित भूषणसार के आदि में १० भूषणसार-लेखन का काल सं० १६६० वि० लिखा है। हमारे विचार में यह समय ठीक ही है । हमने इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में पृष्ठ ५३१५३३ (च० सं०) पर अनेक प्रमाणों से सिद्ध किया है कि भट्टोजि दीक्षित का काल वि० सं० १५७०-१६५० के लगभग है । अतः कौण्ड भट्ट का काल वि० सं० १६००-१६७५ के मध्य रहा होगा। वैयाकरणभूषणसार के व्याख्याता १. हरिवल्लभ (सं० १८०० वि०) हरिवल्लभ ने वैयाकरणभूषणसार पर दर्पण नामक व्याख्या लिखी है। परिचय-हरिवल्लभ ने अपनी टीका के अन्त में लिखा है इति श्रीमत्कूर्माचलाभिजनोत्प्रभातीयोपनामकश्रीवल्लभात्मजहरिवल्लभविरचिते भूषणसारदर्पणे स्फोटवादः समाप्तः ।' ___ इससे इतना ही व्यक्त होता है कि हरिवल्लभ का उपनाम उत्प्रभातीय था। यह श्री वल्लभ का पुत्र था, और इसका अभिजन (== पूर्वजों का निवास) कूर्माचल था। ____पं० गुरुप्रसाद शास्त्री ने स्वसम्पादित भूषणसार के प्रारम्भ में हरिवल्लभ के लिए लिखा है कि यह सं० १८०० वि० में काशी में वर्तमान था । सं० १८५४ में विचरित भूषणसार की काशिका टीका में दर्पण का मत बहुत उद्धृत है। २. हरिभट्ट (सं० १८५४ वि०) ३० हरिभट्ट ने भूषणसार पर दर्पण नाम्नी व्याख्या लिखी है
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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