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________________ व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार -४५५ इस ग्रन्थ में २४५ कारिकाए हैं। प्रथम कारिका इस प्रकार है 'प्रणिपत्य गणाधीशं गिरां देवीं गुरूनपि । मण्डनं भरतं चादिमुनित्रयमनुहरिम् ॥' इससे स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ का रचयिता भरत मिश्र से उत्तरकालिंक है । 1 ९ - १३ स्फोटविषयक ग्रन्थकार इन तीनों ग्रन्थों के अतिरिक्त स्फोट विषयक निम्न ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं - ग्रन्थकार ग्रन्थ • स्फोटप्रतिष्ठा स्फोटतत्त्व स्फोटचन्द्रिका स्फोटनिरूपण स्फोटवाद ६ - केशव कवि १० - शेष कृष्ण कवि ११ - श्री कृष्ण भट्ट १२ - श्रापदेव १३ - कुन्द भट्ट १४ - वैयाकरणभूषण - रचयिता (सं० १५७०-१६५० वि० ) १५ , मूल लेखक-भट्टोजि दीक्षित, व्याख्याकार- कौण्डभट्ट पाणिनीय वैयाकरणों में सम्प्रत्ति वैयाकरण भूषण सार नामक एक ग्रन्थ प्रसिद्ध है । इस ग्रन्थ के नाम के अन्त में सार शब्द के श्रवण से हो स्पष्ट है कि यह किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षेप है । उसका नाम हैवैयाकरणभूषण । भूषण का काल - वैयाकरणभूषण का मूल ग्रन्थ कारिकात्मक हैं । कारिका का लेखक - मूल कारिकायों का लेखक भट्टोजि दीक्षित है । बह प्रारम्भ में ही लिखता है 'फणिभाषितभाष्याब्धेः शब्दकौस्तुभ उद्धृतः । तत्र निर्णीत एवार्थः संक्षेपेण कथ्यते ॥' इससे स्पष्ट है कि इस कारिका ग्रन्थ का लेखक भट्टोजि दीक्षित है और इसका निर्माण शब्दकौस्तुभ के अनन्तर हुआ हैं । कारिका का व्याख्याता - भट्टोजि दीक्षित की कारिकानों पर कौण्डभट्ट ने व्याख्या लिखी है। इसका नाम है- वैयाकरणभूषण । १० २० २५
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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