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व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार
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इस ग्रन्थ में २४५ कारिकाए हैं। प्रथम कारिका इस प्रकार है
'प्रणिपत्य गणाधीशं गिरां देवीं गुरूनपि । मण्डनं भरतं चादिमुनित्रयमनुहरिम् ॥'
इससे स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ का रचयिता भरत मिश्र से उत्तरकालिंक है ।
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९ - १३ स्फोटविषयक ग्रन्थकार
इन तीनों ग्रन्थों के अतिरिक्त स्फोट विषयक निम्न ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं -
ग्रन्थकार
ग्रन्थ
• स्फोटप्रतिष्ठा
स्फोटतत्त्व
स्फोटचन्द्रिका
स्फोटनिरूपण
स्फोटवाद
६ - केशव कवि
१० - शेष कृष्ण कवि
११ - श्री कृष्ण भट्ट १२ - श्रापदेव
१३ - कुन्द भट्ट
१४ - वैयाकरणभूषण - रचयिता (सं० १५७०-१६५० वि० ) १५
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मूल लेखक-भट्टोजि दीक्षित, व्याख्याकार- कौण्डभट्ट
पाणिनीय वैयाकरणों में सम्प्रत्ति वैयाकरण भूषण सार नामक एक ग्रन्थ प्रसिद्ध है । इस ग्रन्थ के नाम के अन्त में सार शब्द के श्रवण से हो स्पष्ट है कि यह किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षेप है । उसका नाम हैवैयाकरणभूषण ।
भूषण का काल - वैयाकरणभूषण का मूल ग्रन्थ कारिकात्मक हैं । कारिका का लेखक - मूल कारिकायों का लेखक भट्टोजि दीक्षित है । बह प्रारम्भ में ही लिखता है
'फणिभाषितभाष्याब्धेः शब्दकौस्तुभ उद्धृतः । तत्र निर्णीत एवार्थः संक्षेपेण कथ्यते ॥'
इससे स्पष्ट है कि इस कारिका ग्रन्थ का लेखक भट्टोजि दीक्षित है और इसका निर्माण शब्दकौस्तुभ के अनन्तर हुआ हैं ।
कारिका का व्याख्याता - भट्टोजि दीक्षित की कारिकानों पर कौण्डभट्ट ने व्याख्या लिखी है। इसका नाम है- वैयाकरणभूषण ।
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