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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
६६५ से पूर्ववर्ती है । अतः उसके शिष्य मण्डन मिश्र का काल भी विक्रम सं० ६९५ से पूर्व है ।
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पाश्चात्त्य विद्वानों ने इत्सिंग के वचन की विवेचना करके भर्तृहरि मृत्यु का काल ७०८ विक्रम संवत् माना है । और उसी के आधार ५. पर कुमारिल शंकर मण्डन मिश्र प्रभृति का काल निर्णय किया है, वह सब अशुद्ध है । इसकी मीमांसा के लिये देखिये हमारा यही ग्रन्थ भाग १, पृष्ठ ३८७ - ३६५ ( च० सं०) ।
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टीकाकार- परमेश्वर
मण्डन मिश्र विरचित 'स्फोट सिद्धि' पर ऋषिपुत्र परमेश्वर की १० एक उत्कृष्ट व्याख्या हैं । यह मद्रास विश्वविद्यालय ग्रन्थमाला में छप चुकी है।
परिचय -: दक्षिण भारत में नाम रखने की जो परिपाटी है, उसके अनुसार ज्येष्ठ पुत्र का वही नाम रखा जाता है जो उसके पितामह का होता है । इस प्रकार का वंश में दो ही नाम अनेक पौढ़ियों तक १५ व्यवहृत होते रहते हैं । इस कारण 'स्फोटसिद्धि' के टीकाकार का काल निर्धारण करना अत्यन्त दुष्कर है । इस ग्रन्थ के सम्पादक शे० क्र० रामनाथ शास्त्री ने इस विषय में जो छान-बीन की है, उसके अनुसार उन्होंने इसका वंशवृक्ष इस प्रकार बनाया है
गौरी (पत्नी) + ऋषि+ भवदास (भ्राता)
परमेश्वर (न्यायकणिका का व्याख्याता )
गोपालिका (पत्नी) ऋषि भवदास वासुदेव सुब्रह्मण्य शंकर
परमेश्वर (गोपालिका प्रणेता)
I ऋषि
परमेश्वर ( मीमांसासूत्रार्थ संग्रहकर्त्ता )
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मण्डन मिश्र की 'स्फोटसिद्धि' के व्याख्याता परमेश्वर की माता का नाम गोपालिका था। इस कारण इस टीका का लेखक द्वितीय ऋषि पुत्र परमेश्वर है ।