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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
७. मण्डन मिश्र (वि० सं० ६६५ से पूर्व )
मण्डन मिश्र ने 'स्फोट सिद्धि' नामक एक प्रौढ़ ग्रन्थ लिखा है । इसमें ३६ कारिकायें हैं, उन पर उसकी अपनी व्याख्या है ।
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परिचय - शङ्कर -दिग्विजय आदि ग्रन्थों के अनुसार मण्डन मिश्र भट्ट कुमारिल के शिष्य थे। इनकी पत्नी का नाम भारती था । शङ्कराचार्य का इनके साथ घोर शास्त्रार्थ हुआ । उसमें भारती ने मध्यस्थता की ।
अनुश्रुति - उक्त शास्त्रार्थ के विषय में लोक में एक अनुश्रुति प्रच लित है - मण्डन मिश्र के पराजित होने पर भारती ने शङ्कर से स्वयं १० शास्त्रार्थ किया । अनुश्रुति के अनुसार उसने शङ्कर को कामशास्त्रसम्बन्धी प्रकरण में निरुत्तर कर दिया । शङ्कर ने कुछ अवधि लेकर किसी सद्योमृत राजा के शरीर में प्रवेश करके कामशास्त्र का ज्ञानप्राप्त कर पुनः भारती से शास्त्रार्थ किया, और उसे परास्त किया । हमें यह अनुश्रुति काल्पनिक प्रतीत होती है । शङ्कराचार्य जैसे निस्सङ्ग १५ व्यक्ति का कामशास्त्र के परिज्ञान के लिये किसी परकाय में प्रवेश करके कामोपभोग करना असम्भव है । इसी प्रकार महा विदुषी भारती का भी एक बालब्रह्मचारी संन्यासी से कामशास्त्र पर चर्चा छेड़ना असम्भव है । वस्तुतः इस अनुश्रुति से दोनों व्यक्तियों का अपमान होता है ।
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इसी विषय में पण्डित प्रवर पद्मनाभ राव जी ने ३०-१०-७३ के पत्र' में लिखा था
आपने [ शंकराचार्य और भारती के विषय में ] जो लिखा है वह सर्वथा समीचीन है। श्री कूडली मठाधीश्वर श्रीमत् सच्चिदानन्द भारती' ने किसी समय वार्ता के प्रसंग में मुझ से कहा था कि - 'कामशास्त्र के परिज्ञान के लिये श्रीमच्छङ्कराचार्य ने परकाय प्रवेश किया यह सन्दर्भ मिथ्या ही है । किसी परमत विद्वेष से विदग्ध अन्तःकरण वाले ने उनके यश को कलंकित करने के लिये यह काव्य बनाया है ।
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१. यह पत्र संस्कृत भाषा में निबद्ध है। उस का भाषान्तर यहां उद्धृत किया है । मूल पत्र तृतीय भाग में देखें ।
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२. स्वामी श्री सच्चिदानन्द भारती आद्य शंकराचार्य के शृङ्ग ेरी मठ की शाखा के मठाधीश्वर हैं ।