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व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार
'इतो ग्रन्थपातसन्धानाय फुल्लराजकृतिलिख्यते " । 'इहापि पतितग्रन्था हेला राजकृतिः फुल्लराजकृत्या सन्धीयते " । श्रन्यकृति — हेलाराज विरचित वातिकोन्मेष ग्रन्थ का उल्लेख प्रथम भाग पृष्ठ ३५४, ३५५ ( च० सं० ) पर कर चुके हैं। स्वकृत क्रिया विवेक का निर्देश हेलाराज ने ३।५० की व्याख्या में किया है ।
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५. फुल्लराज
फुल्लराज नामक किसी विद्वान् ने वाक्यपदीय पर कोई टीका लिखी थी, यह उपरि निर्दिष्ट दो उद्धरणों से स्पष्ट है । फुल्लराज ने वाक्यपदीय के तीनों काण्डों पर वृत्ति लिखी अथवा तृतीय काण्ड मात्र पर, यह अज्ञात है ।
फुल्लराज के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है ।
विशेष - वाक्यपदीय के व्याख्याकारों के विषय में हमने जो कुछ लिखा है, उसका प्रधान, आधार चारुदेव शास्त्री लिखित ब्रह्मकाण्ड का उपोद्घात है ।
६. गङ्गदास ( ? )
पण्डित गङ्गदास ने वाक्यपदीय पर एक टीका लिखी थी । इस टीका के 8 पत्र भण्डारकर इन्सटीट्यूट पूना में सुरक्षित हैं । इस हस्तलेख की सं० ३२४ है । द्र० - व्याकरण सूची, पृष्ठ ३५२-३५३ । इसके अन्त को पाठ इस प्रकार है
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१. वाक्यपदीय काण्ड ३, पृष्ठ ११८, काशी सस्करण । २. वही, पृष्ठ १२४ ।
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' (इति पण्डित गंगवा ) सविरचिते सम्बन्धोद्दशः । षष्ठस्तद्धितो- २० द्दशः समाप्तः ।'
गङ्गदास का देश काल अज्ञात है । इसने वाक्यपदीय के केवल. तृतीय काण्ड पर ही व्याख्या लिखी, अथवा अन्यों पर भी लिखी, यह ज्ञात है । ग्रन्थ के अन्तिम पाठ में (इति गङ्गदा) अक्षर कोष्ठ में लिखे हैं, इस परिवर्धन का मूल भी अन्वेषणीय है ।
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