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कल्हण ने अपनी राजतरङ्गिणी में काश्मीर के राजाओं की चरितावली लिखने वाले हेलाराज द्विजन्मा को स्मरण किया है । यह १० हेलाराज वाक्यपदीय के व्याख्याता हेलाराज से भिन्न है अथवा प्रभिन्न, इस विषय में भी कुछ निश्चयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता । अधिक सम्भावना यही है कि दोनों एक ही व्यक्ति हों ।
हेलाराजीय व्याख्या - हेलाराज ने तृतीय काण्ड के आरम्भ में लिखा है
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
काल - लक्ष्मण और भूतिराज में कितनी पीढ़ी का अन्तर है, यह अज्ञात है । इस कारण हेलाराज का निश्चित काल जानना कठिन है । अभिनव गुप्त ने स्वीय गीताभाष्य में भूतिराज के पुत्र भट्ट इन्दुराज को अपना गुरु कहा है । यह भूतिराज हेलाराज के पिता भूतिराज से भिन्न था अथवा प्रभिन्न, यह कहना कठिन है । यदि दोनों एक हों, तो भट्ट इन्दुराज हेलाराज का भाई होगा। इस प्रकार हेलाराज का काल विक्रम की ११ वीं शतीं का प्रारम्भ माना जा सकता है ।
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'hrush यथावृत्ति सिद्धान्तार्थस तत्त्वतः ।'
इससे विदित होता है कि हेलाराज ने वाक्यपदीय के प्रथम और द्वितीय काण्ड पर भर्तृहरि की स्वोपज्ञ वृत्ति के अनुसार कोई व्याख्या लिखी थी । इसकी प्रथम काण्ड की व्याख्या का नाम शब्दप्रभा था । वह स्वयं लिखता है -
विस्तरेणागमप्रामाण्यं वाक्यपदीयेऽस्माभिः प्रथमकाण्डे शब्दप्रभायां निर्णीतमिति तत एवावधार्यम्' ।'
प्रथम द्वितीय काण्ड व्याख्या की अनुपलब्धि - हेलाराज कृत वाक्यपदीय के प्रथम और द्वितीय काण्ड की व्याख्या सर्वथा प्राप्य हो चुकी है ।
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तृतीय काण्ड व्याख्या में ग्रन्थपात - तृतीय काण्ड की जो व्याख्या उपलब्ध होती है, उसमें भी कई स्थानों में ग्रन्थपात उपलब्ध होता है । हेलाराज की व्याख्या जिस हस्तलेख के आधार पर छपी है, उसमें दो स्थानों पर लिपिकर ने लिखा है
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१. श्री पं० चारुदेव जी द्वारा सम्पादित ब्रह्मकाण्ड के उपोद्घात पृष्ठ १५ ३० पर निर्दिष्ट ।