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व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार ४४५ शशाङ्क-पुण्यराज स्मृत प्राचार्य शशाङ्क का पूर्णनाम भट्टशशाङ्कधर है । पदेषु पदैकदेशान् न्याय के अनुसार पुण्यराज ने पूर्वार्ध शशाङ्क पद का ही प्रयोग किया है। . भट्ट शशाङ्कधर का एक वचन क्षीरस्वामी ने भी इस प्रकार उद्धृत किया है. भट्टशशाङ्कधरस्वत्रंवं गुरुमुष्टि समादिक्षत्, यक्षह-द्विरूपो धात्वर्थः, भावः क्रिया च ।
शशाङ्क-शिष्य-भट्टशाङ्ककधर के अनेक शिष्य रहे होंगे। उनमें से किस शिष्य से पुण्यराज ने वाक्यपदीय का अध्ययन किया, यह विशेष निर्देशाभाव में कहना कठिन है । वाक्यपदीय के सम्पादक पं० १० चारुदेव शास्त्री ने ब्रह्मकाण्ड के उपोद्घात पृष्ठ १३ पर वामनीय अलङ्कारशास्त्र पर टीका लिखने वाले शशाङ्कधर के शिष्य सहदेव को पुण्यराज का गुरु स्वीकार किया है । यह कल्पना उपपन्न हो सकती है।
इस प्रकार पुण्यराज का काल विक्रम की ११ वीं शती, अथवा उससे कुछ पूर्व मानना चाहिये।
१५ ___. हेलाराज (११ वीं शती वि०) हेलाराज ने वाक्यपदीय के तीनों काण्डों पर व्याख्या लिखी थी। परन्तु सम्प्रति केवल तृतीय काण्ड पर ही उपलब्ध होती है।
परिचय-हेलाराज ने तृतीय काण्ड के अन्त में अपना परिचय इस प्रकार दिया है
'मुक्तापीउ इति प्रसिद्धिमागमत् कश्मीरदेशे नृपः' श्रीमान् ख्यातयशा बभूव नृपतेस्तस्य प्रभावानुगः । .... मन्त्री लक्ष्मण इत्युदारचरितस्तस्यान्ववाये भवो,
हेलाराज इमं प्रकाशमकरोच्छीभूतिराजात्मजः ॥' ___ इस उल्लेख से विदित होता है कि काश्मीर के महाराज मुक्ता- २५ पीड के मन्त्री लक्ष्मण के कुल में हेलाराज का जन्म हुआ था। और हेलाराज के पिता का नाम श्री भूतिराज था।
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१. रामलाल कपूर ट्रस्ट अमृतसर द्वारा प्रकाशित संस्करण, पृष्ठ ७ ।
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