SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार . ४३५ वार्तिकों का आश्रय करके महाभाष्य नामा एक अनुपम ग्रन्थ लिखा है। यद्यपि ग्रन्थ को आपाततः देखने पर यह पाणिनीय अष्टाध्यायी की व्याख्यामात्र विदित होता है, परन्तु इस ग्रन्थ का इतना ही स्वरूप नहीं है। यह न केवल पाणिनीय शब्दानुशासन का, अपितु प्राचीन व्याकरण-सम्प्रदायमात्र का एक आकर ग्रन्थ है। व्याकरण- ५ दर्शन के समस्त न्याय इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में यत्र-तत्र विद्यमान हैं। शब्दशास्त्र का अद्वितीय विद्वान् भर्तृहरि लिखता है 'कृतेऽय पतञ्जलिना गुरुणा तीर्थदर्शिना। सर्वेषां न्यायबीजानां महाभाष्ये निबन्धने ।' वाक्य० काण्ड २, श्लोक ४८५॥ १० इसकी व्याख्या में पुण्यराज लिखता है 'तच्च भाष्यं न केवलं व्याकरणस्य निबन्धनम्, यावत् साषां न्यायबीजानां बोद्धव्यमित्यत एव सर्वन्यायबीजहेतुत्वादेव महच्छब्देन विशेष्य महाभाष्यमित्युच्यते लोके।' अर्थात्-भाष्य केवल व्याकरण का ग्रन्थ नहीं है, उसमें सभी १५ न्यायबीजों का निबन्धन है । इसीलिये उसे महत् शब्द से विशेषित करके 'महाभाष्य' कहते हैं। भर्तृहरि पुनः लिखता हैपार्षे विप्लाविते ग्रन्थे संग्रहप्रतिकञ्चुके।' वाक्य० काण्ड २, श्लोक ४८८ ॥ २० इस वचन में भर्तृहरि ने महाभाष्य के लिये संग्रहप्रतिकञ्चुक' शब्द का व्यवहार किया है । इससे स्पष्ट है कि पातञ्जल महाभाष्य 'संग्रह' के समान शब्दशास्त्र का दार्शनिक ग्रन्थ है । भर्तृहरि-विरचित वाक्यपदीय ग्रन्थ का यही एक मात्र आधार ग्रन्थ है । महाभाष्यकार पतञ्जलि के देश-काल आदि के विषय में हम २५ इस ग्रन्थ के १०वें अध्याय में विस्तार से लिख चुके हैं। प्रथम संस्करण में पृष्ठ २४८ पर हमने महाभाष्यकार पतञ्जलि का काल १२०० वि० पूर्व लिखा था। परन्तु अब अनेक ठोस प्रमाणों से यह निश्चित हो गया है कि पतञ्जलि का काल विक्रम से न्यूनातिन्यून २००० दो . सहस्र वर्ष पूर्व अवश्य है। इस कालगणना पर, तथा पुष्यमित्र की ३०
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy