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४३४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रसिद्ध है, ने संग्रह नामक एक व्याकरण सम्बन्धी दार्शनिक ग्रन्थ का प्रवचन किया था। महाभाष्यकार पतञ्जलि ने'शोभना खलु दाक्षायणस्य संग्रहस्य कृतिः' (२॥३॥६६) शब्दों द्वारा इस संग्रह ग्रन्थ की प्रशंसा को है।
संग्रह ग्रन्थ अप्राप्य है। इसमें किस प्रकार के विषयों का प्रतिपादन था, इसका परिज्ञान, महाभाष्य के निम्न उद्धरण से होता है
'संग्रह एतत् प्राधान्येन परीक्षितम्-नित्यो वा स्यात् कार्यों वेति । तत्र क्ता दोषाः, प्रयोजनान्यप्युक्तानि । तत्र त्वेष निर्णयः-यद्येव
नित्योऽथापि कार्यः, उभयथाऽपि लक्षणं प्रवर्त्यम् ।' १३१॥१॥ १० अर्थात् - संग्रह में 'शब्द नित्य है अथवा अनित्य' इस विषय पर
विचार किया गया था। ___ इसी प्रकार संग्रह के जो उद्धरण विभिन्न ग्रन्थों में मिलते हैं, उनसे भी स्पष्ट होता है कि संग्रह वाक्यपदीय के समान व्याकरण का
दार्शनिक ग्रन्थ था। १५ भर्तृहरि ने महाभाष्य की टीका में लिखा हैचतुर्दश सहस्राणि वस्तूनि अस्मिन् संग्रहग्रन्थे (परीक्षितानि)।
हमारा हस्तलेख, पृष्ठ २३ । अर्थात्- संग्रह ग्रन्थ में १४ सहस्र विषयों की परीक्षा थी।
नागेश के मतानुसार संग्रह ग्रन्थ का परिमाण एकलक्ष श्लोक था२० - संग्रहो व्याडिकृतो लक्षश्लोकसंख्यो ग्रन्थ इति प्रसिद्धिः ।' उद्योत
नवा०, निर्णयसागर सं०, पृष्ठ ५५ । ___ व्याडि के परिचय तथा देश काल आदि के विषय में हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ २६८-३५१ (च० सं०) तक विस्तार से लिख चुके हैं।
संग्रह-वचन-प्रथम भाग पृष्ठ ३०८-३११ (च० सं०) तक संग्रह के २१ वचन संगृहीत कर चुके हैं। उन्हें वहीं देखें । प्रयत्न करने पर संग्रह के और भी अनेक वचन संग्रहोत किये जा सकते हैं।
४-पतञ्जलि (२००० वि० पूर्व) पतञ्जलि ने अष्टाध्यायी तथा उस पर लिखे गए कात्यायनीय