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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
प्रमाणान्तर से पुष्ट हो जाये, तो स्फोटायन का काल ३१०० वि० पूर्व होना चाहिये ।
विशेष निर्देश- भरद्वाज मुनि कृत विमान शास्त्र की बौधायन वृत्ति में स्फोटान का नाम मिलता है । उसका पाठ है—
'तत्र तावच्छौनकसूत्रम्
'चित्रिण्येवेति स्फोटायनः' ।'
इस पर बौधायन वृत्ति में लिखा है
' तदुक्तं शक्तिसर्वस्वे - वैमानिकगतिवैचित्र्यादि द्वात्रिंशतिक्रियायोग एकैव चित्रिणी शक्त्यलमिति शास्त्रे निर्णीतं भवतीत्यनुभवतः शास्त्राच्च मन्यते स्फोटायनाचार्यः ।
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इस उद्धरण से विदित होता है कि स्फोटायन प्राचार्य पाणिनि से पूर्ववर्ती शौनक आदि से भी पूर्वकालीन है । तदनुसार स्फोटायन का काल लगभग ३२०० वि० पूर्व अवश्य होना चाहिये ।
इससे अधिक इस प्राचार्य के विषय में हम कुछ नहीं जानते । २ - औदुम्बरायण ( ३१०० वि० पूर्व )
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स्फोटसिद्धि के लेखक भरतमिश्र ने अपने ग्रन्थ के प्रारम्भ में लिखा है.
'भगवदौदुम्बरायणाद्युपदिष्टाखण्डभावमपि व्यञ्जनारोपितनान्तरीयकभेदक्रम विच्छेदादिनिविष्टः परैः एकाकारनिर्भासम् श्रन्यथा सिद्धिकृत्य प्रवहेतुतां चान्यत्र संचार्य भगवदौदुम्बरादीनपि भग२० वदुपवर्षादिभिनिमायापलपितम् ....।' पृष्ठ १ ।
इस वचन से प्रतीत होता है कि भगवान् प्रौदुम्बरायण ने शब्द के अखण्डभाव का अर्थात् स्फोटात्मकता का उपदेश किया था ।
हम पूर्व (भाग १, पृष्ठ १६०० च० सं०) लिख चुके हैं कि वाक्यपदीय २।३४३ के अनुसार प्रौदुम्बरायण श्राचार्य शब्दनित्यत्व२५ बादी था ।
परिचय -- प्रौदुम्बरायण शब्द में श्रुत तद्धित प्रत्यय से विदित
१ द्र० - शिल्पसंसार' पत्रिका १६ फरवरी सन् १९५५ का अंक पृष्ठ १२२, तथा स्वामी ब्रह्ममुनि प्रकाशित बृहद् विमानशास्त्र, पृष्ठ ७४ । 3. द्र० - बृहद् विमानशास्त्र, पृष्ठ ७४ ।